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________________ बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा तस्सा उतुसिनाताय होति गब्भस्स अवक्कमो । ते दोहलिनी होति सुहदा तेन वुच्चति ।। संवच्छरं च ऊनं वा परिहरित्वा विजायति । तेन सा जनयन्ती जनेती तेन वुच्चति ।। थनखीरेन गीतेन अङ्गपापुरणेन च।। रोदन्तं एव तोसेति तोसेन्ती तेन वुच्चति ।। तसो वातातपे घोरे ममिं कत्वाव दारकं । अप्पजानन्त पोसेति पोसेन्ती तेन वुच्चति ।। यं च मातुधनं होति यञ्च होति पितुधनं । उभयं एतस्स गोपेति, अपि पुत्तस्स नो सिया ।। एवं पुत्त अदु पुत्त इति माता विहञ्जति । पमत्तं परदारेसु निसीथे पत्तयोब्बने सायं पुत्तं अनायन्तं इति माता विहञ्जति ।। ___ (जातक-५ सोणनन्दजातक) पुत्र माता-पिता के ऋण से कभी मुक्त नहीं होता, क्योंकि दोनों मिलकर पुत्र के चतुरस्र विकास के लिए, सर्वदा प्रयत्नशील रहते हैं और वात्सल्य की ऊर्जस्वित धारा निरन्तर प्रवाहित करते रहते हैं। माता-पिता दोनों महनीय एवं प्रशंसनीय होते हैं, वे ब्रह्म हैं, प्रथम आचार्य हैं। वे पुत्रों द्वारा आदरणीय हैं, वे सन्तान पर अनुकम्पा करने वाले होते हैं। इसलिए पण्डित को चाहिए कि उन्हें नमस्कार करें तथा उनका आदर करें। जो पण्डित जन अन्न-पान से, वस्त्र से, संमर्दन, संवाहन से, स्नान, पाद-प्रक्षालन से सेवा करता है, उसकी यहाँ प्रशंसा होती है, और स्वर्ग में जाने पर वह आनन्द को प्राप्त होता है ब्रह्मा हि माता-पितरो पुब्बचरिया ति वुच्चरे । आहुनेय्या च पुत्तानं पजानं अनुकम्पका ।। तस्मा हि ते नमस्सेय्य सक्करेय्य च पण्डितो । अन्नेन अथोपानेन वत्थेन सयनेन च ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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