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________________ निरौपम्यस्तव एवं परमार्थस्तव हे प्रभु! तुम इस संसार को स्वन एवं माया सादृश्य शाश्वत तथा उच्छेद रहित और लक्ष्य एवं लक्षण से वर्जित जानते हो; क्योंकि संसार का स्भावास्त्वि नहीं है, इसलिए यह शाश्वत से रहित है। किन्तु इस का व्यवहतास्तित्व है, इसलिए यह उच्छेद से वर्जित है। संसार स्वभावत: लक्ष्य तथा लक्षणों से परे हैं। तमने वासना के मूल रहित समस्त क्लेशों एवं पापों का प्रहाण किया, क्योंकि तुमने क्लोशों के स्वभावसत्ता से शून्यत्व का दर्शन कर अमृत्व (बुद्धत्व) को प्राप्त किया। हे धीर! तुमने आरूप की तरह रूपों को भी अलक्षण देखा, अर्थात् सभी रूपों को निस्स्वभाव देखा जिससे तुम ने रूप का यथार्थत्व का दर्शन किया। इसलिए तुम्हारा उज्जवल रूपकाय दृष्टिगोचर होता है जो बत्तीस महापुरुष लक्षणों एवं अस्सी-अनुव्यञ्जनों से सुशोभित है। रूपादि सांवृतिक धर्मों के दर्शन मात्र से सुदृष्टा (सर्वज्ञ) नहीं है, अपितु रूपादि के धर्म अर्थात् उनके निस्सवभावत्व के दर्शन से सुदृष्टा होता है। (रूपादि सांवृतिक धर्म एवं उनकी निस्स्वभावता दोनो को युगपद् प्रत्यक्षत: जाननेवाला ही सर्वज्ञ कहलाता है।) उक्त प्रकार के तुम्हारे दिव्य काय विनेयजनों के दृष्टिगोचर होते हैं, तथापि तुम्हारे काय में न तो कोई सास्रव छिद्र होते है और न ही माँस, खून तथा हड्डियाँ होती हैं, अपितु तुम्हारे दिव्य रूपकाय आकाश में इन्द्रधातुष की तरह दिखाई देते हैं। तुम्हारे काय में न तो कोई रोग होता है और न ही कोई अशुचि होती है। तुम्हें कोई भूख आरै प्यास नहीं होती है। तथापि लोकानुवृत्ति के लिए तुम सभी लौकिक प्रक्रियाएं प्रदर्शित करते हो। कर्म-आवरण से सम्बद्ध सभी दोषों को तुमने त्याग (प्रहाण) दिये, फिर भी लोकानुकम्पा द्वारा तुम कर्मों की गति को प्रदर्शित करते हो। हे प्रभु! धर्मधातु में कोई भेद नही होता है, इसलिए यान में भी कोई भेद नही किया जा सकता, तथापि सत्त्वों (जीवों) को सही मार्ग में प्रविष्ट कराने के लिए तुमने त्रिविध यान की देशना की। श्रावकयान, प्रत्येकबुद्धयान एवं महायान या बुद्धयान-ये तीन यान हैं। व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार किसी भी यान में प्रवेश कर सकता हैं। किन्तु अन्तिम यान बुद्धयान ही हैं। मामा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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