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________________ षड्दर्शनेषु प्रमाणप्रमेयसमुच्चयः सभी दर्शनों में प्रवेश हेतु, उनके प्रति आकर्षण हेतु अनेक आचार्यों ने ऐसे सरलभाषा में संक्षिप्त ग्रन्थों की रचना की है, जिनके अध्ययन से सभी दर्शनों के मूलभूत सिद्धान्तों आदि का ज्ञान हो सके। इसी क्रम में प्रस्तुत लघुग्रन्थ का सम्पादन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है, जो अब तक शास्त्रभण्डार में अपने उद्धार की प्रतीक्षा में था। मुझे राजस्थान, गुजरात, दक्षिण भारत, मध्यप्रदेश तथा दिल्ली आदि प्रदेशों के अनेक जैन शास्त्र-भण्डारों को देखने का अवसर मिला है, जिनमें अभी भी ऐसे बहुमूल्य सहस्रों अप्रकाशित शास्त्र हैं, जिनका समय रहते उद्धार नहीं हुआ तो वे नष्ट हो जायेंगे। अत: इनके सम्पादन एवं प्रकाशन के कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर हाथ में लेना हम सभी का प्रमुख उत्तरदायित्व है। प्रस्तुत ग्रन्थ, ग्रन्थकार और सम्पादन कार्य पिछले कुछ वर्षों से निरन्तर कई बार मुझे अजमेर (राजस्थान) के श्री दिगम्बर जैन महापूत चैत्यालय (सेठजी की कोठी के पास, उन्हीं द्वारा निर्मित जैन मंदिर) के शास्त्रभण्डार को देखने का अवसर मिला। वहाँ जैनधर्म एवं जैनेतर धर्मों के विविध विषयों से संबंधित शताधिक ऐसे ग्रन्थ हैं, जो अभी तक अप्रकाशित हैं। मुझे वहाँ के प्रमुख श्रीमान् सेठ सा. निर्मलचंद जी सोनी जी के सौजन्य से कुछ अप्रकाशित शास्त्रों की जीराक्स प्रतियाँ प्राप्त हुई थीं, उनमें प्रस्तुत 'षड्दर्शनेषु प्रमाणप्रमेय-समुच्चयः' नामक लघुग्रन्थ, जो कि अनंतवीर्याचार्य नामक जैनाचार्य द्वारा लिखा गया था, को सम्पादित एवं प्रकाशित कर अतीव प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। __ प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्त में लिखा हैं- 'इति सर्वमत समुच्चयमिदमद्भुत वाक्यनिबद्धं शिष्य-प्रशिष्याणं विकासार्थमतन्तवीर्याचार्यश्चक्रे सिद्धान्तप्रवेशकं श्री अनन्तवीर्याचार्यस्पक्षाति सर्वमतं समाप्तम्।' इस उल्लेख से सिद्ध होता है कि इसके कर्ता अनन्तवीर्याचार्य है। इस नाम के दिगम्बर परम्परा में दो आचार्यों का उल्लेख मिलता है। एक आचार्य अकलंकदेवकृत सिद्धिविनिश्चय के टीकाकार आचार्य अनंतवीर्य हैं। दूसरे आ. माणिक्यनंदि कृत परीक्षामुखसूत्र पर सरल भाषा में 'प्रमेयरत्नमाला' नामक टीका के कर्ता आचार्य अनंतवीर्य, जिन्हें विद्वानों ने ‘लघु अनन्तवीर्य' के नाम से सम्बोधित किया है। इन लघु अनन्तवीर्य का समय विद्वानों ने बारहवीं सदी का पूर्वार्द्ध माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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