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________________ बुद्धघोसुप्पत्ति पाठ सुना दिया। घोस कुमार ने कहा कि भन्ते! मैं आपके मंत्र का अर्थ जानना चाहता हूँ। उसकी बात को सुनकर महास्थविर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कुसला धम्मा, अकुसला धम्मा, अब्याकता धम्मा आदि के अर्थ को स्पष्ट किया और यह बतलाया कि अनवद्य इष्ट विपाक लक्षण कुशल है और अकुशल को नष्ट कर देना इसका कृत्य है, मन का निर्मल होना इसके जानने का आकार है और यह सुगति को देने वाला है। इसके विपरीत अकुशल धर्म है, जो दुर्गति को देने वाला है और इन दोनों से भिन्न अब्याकृत धर्म है, जिसका विपाक नहीं होता है तथा जो कुशल तथा अकुशल भी नहीं है। इस प्रकार उन्होंने २१ कुशल, १२ अकुशल, ३६ विपाक तथा २० प्रकार के क्रिया चित्तों का वर्णन किया, और बतलाया कि इसे सद्धर्म कहते हैं। पुनः जब घोसकुमार ने पूछा कि इस मंत्र का क्या नाम है? तब महास्थविर ने इसे बुद्धमंत्र बतलाया। पुन: घोसदेवपुत्र ने पूछा कि क्या मैं इसे सीख सकता हूँ, तो महास्थविर ने बतलाया कि प्रव्रजित होने पर ही कोई सीख सकता है। गृहस्थ अनेक बाधाओं से परिपूर्ण रहता है, इसलिए वह इसे नहीं सीख सकता। इसके बाद घोस कुमार ने माता-पिता से आज्ञा लेकर महास्थविर के पास जाकर प्रव्रज्या ली। प्रव्रजित होने पर उसे महास्थविर ने 'तचकम्मट्ठान' दिया और उस पर ध्यान करने को कहा। बुद्धघोष ने उस कम्मट्ठान पर भावना करते हुए बुद्ध, धर्म तथा संघ में श्रद्धा रखते हुए दससील का पालन किया तथा अनित्य, दुःख, अनात्म की भावना करते हुए बुद्धशासन में श्रद्धावान् हुआ। इस प्रकार उन्होंने सम्पूर्ण त्रिपिटक को एक वर्ष में ही कंठस्थ कर लिया और चार प्रतिसम्भिदाओं को जानकर अविहत ज्ञान सम्पन्न हुआ। तब से इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में वह बुद्धघोष के नाम से जाना जाने लगा। तृतीय परिच्छेद तीसरे परिच्छेद में बुद्धघोष के माता-पिता की मिथ्यादृष्टियों को हटाने का उपाय बतलाया गया हैं। एक दिन बुद्धघोष के मन में यह विचार आया कि मेरी प्रज्ञा अधिक है अथवा मेरे उपाध्याय की। उपाध्याय ने, जो महाक्षीणास्रव थे, उसके चित्त में उत्पन्न उस वितर्क को जान लिया और जानकर बुद्धघोष से कहा कि तुम्हारा ऐसा सोचना श्रमण धर्म के अनुकूल नहीं है। बुद्धघोष स्थविर की बात को समझकर उनसे क्षमा याचना की। तब उपाध्याय ने कहा कि यदि तुम लंकाद्वीप जाकर सम्पूर्ण बुद्धवचन को सिंहली भाषा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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