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________________ (२२) इस तथ्य को विस्तार से उद्घाटित करने के लिए बौद्ध-दर्शन के संस्कृत में प्राप्त ग्रन्थों से भी पाद-टिप्पणियाँ वहीं पर दे दी गयी हैं। विद्वानों का यह विचार है कि जब तक अनुरुद्धाचरिय द्वारा अभिधम्मत्थसङ्गह की रचना नहीं हुई थी, तब तक अभिधर्म के तत्त्वों का परिज्ञान कराने के लिए प्रचलित ग्रन्थ के रूप में बौद्ध-समाज में सच्चसङ्केप का ही प्रचार था और बाद में इसका स्थान अभिधम्मत्थसङ्गह ने ले लिया। मङ्गलगाथा के पश्चात् अभिधम्मत्थसङ्गह की भी दूसरी गाथा अभिधर्म के अर्थों को परमार्थ रूप में व्यक्त करने के लिए ही लिखी गयी है: "तत्थ वुत्ताभिधम्मत्था चतुधा परमत्थतो। चित्तं चेतसिकं रूपं निब्बानमिति सब्बथा' ।। यह ग्रन्थ निम्नाङ्कित पाँच परिच्छेदों में विभक्त है:- रूपसङ्केप, खन्धत्तयसङ्केप, चित्तपवत्तिपरिदीपनपरिच्छेद, विज्ञाणक्खन्धपकिण्णकनयसङ्ग्रेप, निब्बानपञत्तिपरिदीपनपरिच्छेद। इन परिच्छेदों के शीर्षक के अनुसार ही उनमें विषय-वस्तु का वर्णन किया गया है और परिच्छेद से सम्बन्धित सम्पूर्ण सामग्री वहाँ पर गाथा-रूप में प्रस्तुत कर दी गयी है। इस लघु ग्रन्थ का प्रारम्भ रूप के वर्णन से किया गया है, जो अभिधर्मपिटक के ग्रन्थ विभङ्गपालि को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया है। इसकी तुलना में अभिधम्मत्थसङ्गह का प्रारम्भ चित्त के वर्णन से होता है, जिसका आधार अभिधम्मपिटक का ही ग्रन्थ धम्मसङ्गणिपालि है। ___ इस ग्रन्थ में मङ्गलगाथा को लेकर ३८७ कारिकाएँ हैं, जिनमें मङ्गलगाथा के अन्तर्गत २ गाथाएँ, प्रथम परिच्छेद में ७० गाथाएँ, द्वितीय परिच्छेद में ४३ गाथाएँ, तृतीय परिच्छेद में ७६ गाथाएँ, चतुर्थ परिच्छेद में ११२ गाथाएँ तथा पञ्चम परिच्छेद में ८४ गाथाएँ अथवा कारिकाएँ हैं। सम्पादन-शैली ग्रन्थ में आये हुए तकनीकी दार्शनिक शब्दों को भरसक काले अक्षरों में रखा गया है, जिससे अध्येताओं को विशेष रूप से उनकी अभिव्यक्ति हो सके और इन्हें स्पष्ट करने के लिए सम्बन्धित ग्रन्थों से उद्धरण नामोल्लेख तथा १. दि पालि लिट्रेचर आफ सीलोन, पूर्वोक्त, पृ० २०३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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