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________________ (५) " अपरे पन चित्तस्स ठितिखणं" (मूलटीका, सिंहली संस्करण, भाग १, पृ० २१-२२ ) । (६) “भङ्गक्खणे च रूपुप्पादं पटिसेधेन्ति" (मूलटीका, सिंहली संस्करण, भाग - २, पृ० २३-२४) । ( १९ ) ३ (७) “आनन्दाचरियादयो पन सब्बेसम्पि चुतिचित्तं रूपं न समुट्ठापेती ति वदन्ति...। (मूलटीका, सिंहली संस्करण, भाग १, पृ० १५१-१५२) । (८) "टीकाकारमतेन एकादसमे सत्ताहे वा" (मूलटीका, सिंहली संस्करण, भाग ३, पृ० १३०-१३१) । (९) “आनन्दचरियो पन भणति - 'पादकज्झानतो वुट्ठाय पच्चुप्पन्नादिविभागं अकत्वा केवलं इमस्स चित्तं जानामिच्चेव परिकम्मं कत्वा...... अनिट्ठे च ठाने नानारम्मणता दोसो नत्थि अभिन्नाकारप्पवत्तितो" ति ( मूलटीका, सिंहली संस्करण, भाग १, पृ० ९४) । ५ सुमङ्गल स्वामी द्वारा अभिधम्मावतार की टीका अभिधम्मत्थ- विकासिनी में सच्चसङ्क्षेप की गाथाओं के उद्धरण (१) सातवें परिच्छेद की गाथा सं० ३७६ की वण्णना में स०स० की गाथा सं० १७६ का उल्लेख (अभिधम्मत्थविकासिनीटीका, भाग २, पृ० ३८, बुद्धसासन समिति, बर्मा, संस्करण, १९६४)। (२) नवम परिच्छेद की गाथा सं० ५६४-५६७ की वण्णना में स०स० की गाथा सं० १७३ का उल्लेख ( वहीं, पृ० ९६)। सुमङ्गल स्वामी द्वारा अभिधम्मत्थसङ्गह की विभाविनीटीका (रोमन संस्करण) में सच्चसङ्क्षेप की गाथाओं के उद्धरण सच्चसङ्क्षेप की कारिका संख्या विभाविनी के रोमन संस्करण की पृ० सं० कारिका ७४ कारिका १७१ कारिका ६० वहीं । १ - २ . ४. वहीं, पृ० १६३ । Jain Education International ३. वहीं, पृ० १५९ । ५. वहीं, पृ०२०३। पृ० ९५ पृ० १०१ पृ० १०८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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