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________________ स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि विनयपिटक को उपालि ने सविस्तार प्रस्तुत किया था, किन्तु अभिधम्म को किसने वहाँ रखा, यह विवरण नहीं मिलता; केवल धम्म के उपस्थापन के प्रश्न के प्रसङ्ग में अगुत्तरनिकाय के पश्चात् अभिधम्म के सङ्गायन की बात वहाँ कही गयी है और इसे सूक्ष्मज्ञानगोचर तन्ति के नाम से अभिहित किया गया है तथा यह किसके द्वारा वहाँ प्रस्तुत किया गया, इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। यदि खुद्दकनिकाय के अन्तर्गत धम्म के रूप में अभिधम्म का संग्रह प्रथम सङ्गीति में मान भी लिया जाय तो विनयपिटक को उपालि द्वारा प्रस्तुत होने पर भी खुद्दकनिकाय के अन्तर्गत इसे रखने का क्या औचित्य होगा। परम्परा में तो इसका यह उत्तर दे दिया जाता है कि चारों अन्य निकायों में जो बुद्धवचन संगृहीत हैं उनके अतिरिक्त अवशिष्ट बुद्धवचन खुद्दनिकाय में संग्रहीत हैं तथा वहाँ पर जो विनयपिटक को निकाय के रूप में रखा जाता है, उसे उपालि ने प्रस्तुत किया था और शेष खुद्दकनिकाय और अन्य चारों निकायों को आनन्द ने। समन्तपासादिका में यह उल्लिखित है"तत्थ खुद्दकनिकायो नाम चत्तारो निकाये ठपेत्वा अवसेसं बुद्धवचनं। तत्थ विनयो आयस्मता उपालित्थेरेन विस्सज्जितो, सेसखुद्दकनिकायो चत्तारो च निकाया आनन्दत्थेरेन' । इससे प्रथम सङ्गीति में अभिधम्म को प्रस्तुत करनेवाले आनन्द ही हो जाते है; किन्तु धम्मसङ्गणि की अट्ठकथा अट्ठसालिनी में अभिधम्म की देशना की परम्परा का दूसरे प्रकार से उल्लेख आचार्य बुद्धघोष द्वारा किया गया है, और यह उल्लेख प्रथम सङ्गीति में उन्हीं के द्वारा दीघनिकाय की अट्ठकथा सुमङ्गलविलासिनी और विनयट्ठकथा समन्तपासादिका में प्रदत्त विवरणों से भिन्न होने के कारण प्रथम सङ्गीति में ही अभिधम्म के सङ्गायन के प्रति सन्देह उत्पन्न करता है। द्वितीय सङ्गीति भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण के १०० वर्ष के बाद वैशाली में हुई। यद्यपि इसका आयोजन संघ में वज्जिपुत्तक भिक्षुओं द्वारा दस वस्तुओं के विनय-विरुद्ध आचरण को समाप्त करने के लिए हुआ, तथापि समन्तपासादिका में प्राप्त इसके विवरणानुसार दस वस्तुओं के निराकरण के पश्चात् इसमें भी प्रथम सङ्गीति के समान सम्पूर्ण धम्म तथा विनय का सङ्गायन भिक्षुओं द्वारा किया गया । वैशाली के वज्जिपुत्तक भिक्षुओं ने इस द्वितीय सङ्गीति में हुए निर्णयों को अमान्य करते हुए दस सहस्र भिक्षुओं की महासङ्गीति अथवा १. वहीं। २. अट्ठ०, पृ० १४-१५। ३. चुल्लवग्ग, पृ० ४१६ । ४. समन्तपासादिका १, पृ० ३०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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