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________________ २१२ श्रमणविद्या-३ (ई.१०२९) कृत णाणसारो (६३गाथायें), ब्रह्मचारी हेमचन्द्र कृत श्रुतस्कन्ध (९४गाथायें), इन्द्रनन्दि कृत छेदपिण्ड (३६२ गाथायें), आचार्य शिवशर्म (११वीं शती के आसपास) कृत 'कम्मपयडि', श्रुतमुनि (१७वीं शती) कृत भावत्रिभंगी एवं आस्रवत्रिभंगी आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त सारसमय, लोकविनिश्चय तथा लोक विभाग जैसे अनेक ग्रन्थों का उपलब्ध साहित्य में नामोल्लेख मात्र तो मिलता है, किन्तु वर्तमान में ये अनुपलब्ध हैं। नाट्य साहित्य और शौरसेनी प्राकृत यहाँ हम शौरसेनी प्राकृत के आचार्यों के योगदान के प्रसंग में उन महान् नाटककारों को कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने अपनी नाट्य कृतियों में विभिन्न प्रकार की प्राकृतों के साथ शौरसेनी प्राकृत को मूल रूप में सुरक्षित रखने और बचाने में महनीय योगदान दिया। आज जो प्राचीन संस्कृत नाटक उपलब्ध हैं, वस्तुतः उन्हें प्राकृत नाटक ही कहना चाहिए। क्योंकि उनमें संस्कृत की अपेक्षा विविध और अनेक पात्रों द्वारा प्राकृत भाषा का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है। इन नाटकों की प्रकृति मूलत: प्राकृत की ही है। नाट्य शास्त्र के विधान के अनुसार नाटकों में राजा (नायक), ब्राह्मण, सेनापति, मंत्री और विद्वान् पात्र संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं। स्त्रियाँ और शेष अन्य पात्र अर्थात् उपर्युक्त के अतिरिक्त प्राय: सभी पात्र प्राकृत भाषाओं का प्रयोग करते हैं। वस्तुत: जो पात्र जनता के बीच के होते हैं, जनता का ही प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके द्वारा जनभाषा या लोकभाषा के रूप में प्राकृत भाषा ही प्रयुक्त होती हैं। इस तरह शास्त्रीय विधान के अनुसार भी भाषा की दृष्टि से नाटकों में प्राकृत भाषा का ही सर्वाधिक प्रयोग मान्य है। गंगा और यमुना के मध्यवर्गीय पुरुष-पात्र शौरसेनी का व्यवहार करते हैं। किरातों, बर्बरों आन्ध्रों एवं द्रविडों की भी शौरसेनी भाषा बतलायी गयी है। __ अश्वघोष ऐसे प्रथम नाटककार हैं, जिनके नाटकों में मागधी, अर्धमागधी एवं शौरसेनी भाषा के प्राचीन रूप पाये जाते हैं। भास के १३ नाटक प्राप्त हैं। इनमें अविमारक और चारुदत्त - इन दो नाटकों में प्राकृत भाषा की इतना आधिक्य है कि इन्हें प्राकृत नाटक कहना ही उपयुक्त होगा। भास के सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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