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________________ शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान २०९ चामुण्डराय के गुरु थे। जिस तरह चक्रवर्ती अपने चक्ररत्न से भारतवर्ष के छह खण्डों को बिना किसी विघ्न-बाधा के अपने अधीन कर लेता है, उसी तरह इन्होंने अपने बुद्धिबल रूपी चक्र से जीवस्थान, क्षुद्रकबंध, बन्धस्वामित्व, वेदना, वर्गणा और महाबंध इन छह खण्डों में विभक्त षटखण्ड रूप षटखण्डागम नामक सिद्धान्तशास्त्र को गोम्मटसार नामक ग्रन्थ में सम्यक् रूप से साधा है। यथा जह चक्केण य चक्की छक्खंडं साहियं अविग्घेण । तह मइ-चक्केण मया छक्खंड साहियं सम्मं ।। -गोम्मटसार कर्मकाण्ड. गाथा ३९७। इस तरह इन्होंने षटखण्डागम एवं इसकी धवला टीका रूप सिद्धान्त शास्त्र का मंथनकर शौरसेनी प्राकृत में गोम्मटसार ग्रन्थ की रचना की तथा कसायपाहुड सुत्त एवं इसकी जयधवला टीका का मंथनकर लब्धिसार नामक ग्रन्थ की रचना की। आ. नेमिचन्द्र देशीयगण के आचार्य हैं। इन्होंने अभयनंदि, वीरनंदि और इन्द्रनन्दि को अपना गुरु बतलाया है।' विद्वानों ने गोम्मटसार, त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों के कर्ता और द्रव्यसंग्रह के कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव अलग-अलग समयों के दो भिन्न आचार्य माने हैं, किन्तु दोनों को कुछ विद्वान् भ्रमवश एक मान लेते हैं। जबकि दोनों अलगअलग नाम से प्रसिद्ध है। अत: गोम्मटसार के कर्ता आ.नेमिचंद सिद्धान्त चक्रवर्ती के रूप में प्रसिद्ध हैं, जबकि द्रव्यसंग्रह के कर्ता इनसे भिन्न ‘मुनि नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव' इस नाम से प्रसिद्ध हैं। साहित्य सृजन गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, और क्षपणासार-ये इनकी प्रमुख श्रेष्ठ सैद्धान्तिक कृतियां हैं। ये सभी शौरसेनी प्राकृत में रचित हैं। संक्षेप में इनके द्वारा सृजित साहित्य का परिचय इस प्रकार है१. गोम्मटसार 'गोम्मट' यह चामुण्डराय का घर में बोला जाने वाला नाम था। अत: चामुण्डराय द्वारा श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में विन्ध्यगिरि पर्वत पर स्थापित की १. गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा ४३६ एवं ७८५, लब्धिसार गाथा ६४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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