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________________ २०२ श्रमणविद्या-३ भगवती आराधना पर दो महत्त्वपूर्ण टीकायें उपलब्ध हैं। १.अपराजित सूरि कृत विजयोदया टीका तथा २.पं. आशाधर कृत 'मूलाराधना दर्पण टीका'। शिवार्य ने भगवती अराधना में तत्कालीन प्रचलित अनेक प्राचीन परम्पराओं को भी सम्मिलित कर साधक जीवन की सफलता का अच्छा निदर्शन किया है। साथ ही आज के सन्दर्भ में, जबकि हमारे भारत देश में सरकार 'छोटा परिवार सुखी परिवार' की नीति के प्रचार पर अपार धन खर्च करती है किन्तु वैसी सफलता प्राप्त नहीं होती। अत: इसके लिए इस भगवती आराधना ग्रन्थ का यह महत्त्वपूर्ण संदेश कि ‘बहुत बच्चों वाला बड़ा परिवार दरिद्र और सदा दुःखी रहता है' काफी कार्यकारी हो सकता है। यथा तो ते सीलदरिद्दा दुक्खमणंतं सदा वि पावंति । बहुपरियणो दरिद्दो पावदि तिव्वं जधा दुक्खं ।। ।। भगवती आराधना गाथा१३०३ ।। अर्थात् जैसे बहुपरिजन वाला दरिद्र व्यक्ति तीव्र दु:ख पाता है, वैसे ही शील से दरिद्र मुनि सदा अनंत दु:ख पाते हैं। इस तरह का समाजशास्त्रीय अध्ययन तो महत्त्वपूर्ण है ही, यदी इसका सांस्कृतिक अध्ययन भी किया जाए तो अति महत्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध होगा। ८. आचार्य वट्टकेर और उनका मूलाचार श्रमणाचार विषयक शौरसेनी प्राकृत भाषा के एक बहुमूल्य ग्रन्थ 'मूलाचार' के यशस्वी कर्ता आचार्य वट्टकेर का इस क्षेत्र में अनुपम योगदान है। यह उनकी एकमात्र उपलब्ध कृति है। दिगम्बर जैन परम्परा में आचारांग के रूप में प्रसिद्ध यह श्रमणाचार विषयक मौलिक, स्वतंत्र प्रामाणिक एवं प्राचीन ग्रन्थ द्वितीय-तृतीय शती के आसपास की रचना है। यद्यपि अन्य कुछ प्रमुख आचार्यों की तरह आ. वट्टकेर के विषय में भी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है, किन्तु उनकी एकमात्र अनमोल कृति मूलाचार के अध्ययन से ही आ.वट्टकेर का बहुश्रुत सम्पन्न एवं उत्कृष्ट चारित्रधारी आचार्यवर्य के रूप में उनका व्यक्तित्व हमारे समक्ष उपस्थित होता है। इस विषयक विस्तृत जानकारी के लिए देखें-इस लेख के लेखक डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी द्वारा लिखित एवं ई.सन् १९८७ में पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोघ संस्थान, वाराणसी५, द्वारा प्रकाशित अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत एवं चर्चित शोध प्रबंध “मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन' का प्रथम-प्रास्ताविक अध्याय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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