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________________ श्रमणविद्या-३ की रचना मूल द्वादशांग के तत्संबधी स्थलों और विषयों के आधार पर की है। यथा बारहवें अंग दृष्टिवाद के अन्तर्गत चौदह पूर्वो में पंचम पूर्व ज्ञानप्रवाद के बारह वस्तु-अधिकारों में से दशम वस्तु अधिकार ‘समय पाहुड' के आधार पर समयसार ग्रन्थ की रचना की गई। उन्होंने अपने ग्रन्थोंकी प्रामाणिकता का आधार प्राय: सभी ग्रन्थों के प्रारम्भिक मंगलाचरणों में सूचित करते हुए कहा है कि श्रुतकेवलियों ने जो कहा है, मैं वहीं कहूँगा अर्थात् श्रुतकेवलियों द्वारा प्ररूपित तत्त्वज्ञानका में वक्ता मात्र हूँ, स्वयं कर्ता नहीं। अर्थात् समयपाहड आदि वही ग्रन्थ हैं, जिनकी देशना भगवान् महावीर ने और जिनकी प्ररूपणा गौतम गणधर तथा श्रुतकेवलियों ने की थी, वही ज्ञानामृत आचार्य परम्परासे सुरक्षित रूप में आचार्य कुन्दकुन्दको प्राप्त हुआ, जिसे उन्होंने इन ग्रन्थों द्वारा उसी रूप में हम तक पहुँचाया। आरम्भ में साक्षात् गणधर-कथित वा प्रत्येकबुद्ध-कथित सूत्रग्रन्थों की केवल मौखिक परम्परा चली आ रही थी, सिद्धान्त ग्रन्थों के नाम पर गृहस्थों को पढ़ने की अनुमति नहीं थी। श्रुत क्रमश: प्राय: इतना विच्छिन्न और विस्मृतसा हो गया था कि सर्वसाधारण विद्वान्-साधुओं को उन विषयों पर लेखनी चलाने का साहस न होता था। किन्तु इस स्थितिको आचार्य कुन्दकुन्दने बड़ी कुशलता के साथ सम्हाला और साहित्य सृजन करके जनता को उद्बोधित करने के लिए वे आगे बढ़े। साथ ही अपने अनुभव की बाजी लगाकर उन्होंने १.पंचत्थिकाय, २. समयपाहुड, ३. पवयणसार, ४. णियमसार, ५. अट्ठपाहुड, इसमें दंसणपाहुड, चारित्तपाहुड, सुत्तपाहुड, बोधपाहुड, भावपाहुड, मोक्खपाहुड, सीलपाहुड तथा लिंगपाहुड-ये आठ पाहुड सम्मिलित हैं) ६. बारस अणुवेक्खा और ७.भत्तिसंगहो (जिसमें सिद्ध, सुद, चारित्त, (जोइ) योगी, आइरिय, णिव्वाण, पंचगुरु तथा तित्थयरभत्ति नामक भक्तिसंग्रह) जैसे महान् ग्रन्थों की रचना की। इनके अतिरिक्त रयणसार को विद्वान् इन्ही की कृति मानते हैं। तमिल वेदके रूप में सुविख्यात तिरुक्कुरल (कुरलकाव्य) नामक नीतिग्रन्थ भी इनकी कृति मानी जाती है। आचार्य कुन्दकुन्दकी उपलब्ध कृतियों में से पञ्चत्थिकाय, समयपाहुड और पवयणसार को नाटकत्रयी या प्राभृतत्रयी भी कहा जाता है। इनमें पंचास्तिकाय २. (क) वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुदकेवली भणिदं.........समयसार १.१. (ख) वोच्छमि णियमसारं, केवलि-सुदकेवली भणिदं.........नियमसार १.१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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