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________________ शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान १८९ के सोपानभूत चौदह गुणस्थानों की विवेचना करते हुए बतलाया है कि इन गुणस्थानों में जीव किस तरह उत्तरोत्तर उत्कर्ष प्राप्त करते हुए रत्नत्रय को वृद्धिंगत करते हैं। क्षुद्रकबन्ध नामक द्वितीय खण्ड में बन्धक-अबन्धक जीवों का विवेचन, तृतीय बन्धस्वामित्वविचय खण्ड में कर्म के बंधक मिथ्यात्व, असंयम (अविरत) कषाय और योग-इन चार मूल प्रत्ययों एवं उनके उत्तरभेदों की विस्तृत प्ररूपणा की गई है। चतुर्थ वेदना खण्ड में कृति और वेदना-ये दो अनुयोगद्वार हैं। पंचम वर्गणा खण्ड में स्पर्श, कर्म और प्रकृति-इन तीन अनयोगद्वारों का ही प्रतिपादन है तथा छठे 'महाबंध' खण्ड में बन्धनीय अधिकार की समाप्ति के बाद प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग बन्ध का विस्तृत विवेचन है। इसके प्रथम पाँच खण्डों का विस्तार छह हजार श्लोक-प्रमाण तथा अन्तिम खंड महाबंध का विस्तार तीस हजार श्लोक प्रमाण है। यद्यपि यह पूरा ग्रंथ गद्य रूप सूत्र शैली में निबद्ध है, किन्तु बीच-बीच में कुछ गाथा सूत्र भी उपलब्ध हैं। चौथे वेदना खण्ड में आठ और पाँचवे वर्गणा खंड में अट्ठाईस गाथासूत्र हैं। उदाहरणार्थ एक गाथासूत्र उद्धृत किया जा रहा है कालो चदुण्ण वुड्ढी कालो भजिदव्वो खेत्तवुड्ढीए । वुड्ढीए दव्व पज्जय भजिदव्वा खेत्तकाला दु ।। अर्थात् काल चारों की वृद्धि को लिए हुए होता है। कालवृद्धि के होने पर द्रव्य, क्षेत्र और भाव की वृद्धि नियमत: होती है। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल की वृद्धि, होती भी है, नहीं भी होती है। इस प्रकार आ. धरसेन के माध्यम से आ. पुष्पदन्त और भूतबलि ने षटखंडागम नामक इस परमागम की रचना करके सिद्धान्तों की सुरक्षा में महनीय योगदान दिया है। ___इस महान ग्रन्थ पर आचार्य वीरसेन स्वामी ने (९ वीं शती) ने प्राकृत और संस्कृत मिश्रित भाषा में 'मणि-प्रवाल न्याय' की तरह बहत्तर हजार श्लोक प्रमाण 'धवला' नामक महत्वपूर्ण टीका लिखी है। धवला टीका के उल्लेखानुसार यह स्पष्ट है कि आचार्य धरसेन द्वारा भी जोणि पाहुड (योनिप्राभृत) नामक कोई ग्रन्थ लिखा गया था, किन्तु यह उपलब्ध नहीं है। १. छक्खण्डागम वग्गणाखंड पृष्ठ७०४ २. धवला पुस्तक १३ पृष्ठ ३४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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