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________________ १८६ श्रमणविद्या-३ जयधवला टीका अपने आधारभूत मूलग्रन्थ कसायपाहुड और उसके चूर्णिसूत्रों पर लिखी गई विशाल टीका है। इसमें २० हजार श्लोकप्रमाण प्रारम्भिक भाग की रचना आचार्य वीरसेन ने की थी तथा इनसे स्वर्गवास के बाद शेषभाग की रचना इनके सुयोग्य शिष्य जिनसेनाचार्य ने की। इस समय यह जयधवला टीका हिन्दी अनुवाद और विशेष विवेचन के साथ भा. दिगम्बर जैन संघ, चौरासी-मथुरा से १६ से भी अधिक भागों में प्रकाशित हो चुकी है। इसे २०वीं सदी के लगभग पाँचवें दशक में चरित्रचक्रवर्ती स्व. आचार्य श्री शांतिसागर जी के प्रयास से 'ताम्रपत्रोत्कीर्ण' भी किया जा चुका है। इस टीका की उपयोगिता और प्रसिद्धि इतनी अधिक है कि मूलग्रन्थ तक के लिए लोग 'जयधवलसिद्धान्त ग्रन्थ' नाम से अभिहित करते हैं। उपर्युक्त टीकाओं के आधार पर इस सिद्धान्त आगम ग्रन्थ की महत्ता गहनता स्वयं सिद्ध है और इस माध्यम से इसके कर्ता आचार्य गुणधर का योगदान भी हमारे लिए गौरव की वस्तु है। इस ग्रन्थ की रचना करके आ. गुणधर ने इसका व्याख्यान आचार्य नागहस्ति और आर्य मंक्षु को भी किया था। कहा भी है कि 'पुणो ताओ चेव सुत्तगाहाओ आइरिय परंपराए आगच्छमाणीओ अज्जमखुणागह त्थीणं-पत्ताओ' अर्थात् कसायपाहुड के गाहात्त गुरू-शिष्य परम्परा से आते हुए आर्य मंक्षु एवं नागहस्ति को प्राप्त हुए। इन दोनों आचार्यों का उल्लेख श्वेताम्बर परम्परा में भी प्राप्त होता है। उपलब्ध जैन सिद्धान्त-आगम ग्रन्थों में भी यही एक ऐसा ग्रन्थ है जिस पर सर्वाधिक टीका साहित्य लिखा गया है। दो सौ तैतीस गाथाओं वाले इस मूलग्रन्थ पर लिखित टीकाओं का प्रमाण लगभग दो लाख श्लोक प्रमाण से भी अधिक होगा। इस प्रकार हम सभी आचार्य गुणधर के दिव्य अवदान से सदा उपकृत रहेंगे। २. आचार्य धरसेन, ३. पुष्पदन्त एवं ४. भूतबलि ___ महावीर निर्वाण के ६०० वर्ष बाद अर्थात् ईसा की प्रथम शती के महान् आचार्य धरसेन को आगमज्ञान परम्परा को अक्षुण्ण रखने वालों में अग्रणी माना जाता है। सौराष्ट्र प्रदेश के गिरिनगर (जूनागढ़) की चन्द्रगुफा में साधना-रत प्रवचन वात्सल्य आचार्य धरसेन सिद्धान्तों के प्रौढ़-वेत्ता तथा महाकम्मपयडिपाहुड के विशेष १. जयधवला भाग१-पृष्ठ८८ २. कसायपाहुड सुत्त--संपा.-पं. हीरालाल सि. शास्त्री, वीर शासन संघ, कलकत्ता प्रकाशकीय पृष्ठ-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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