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________________ प्राकृत कथा - साहित्यः उद्भव, विकास एवं व्यापकता सार्वजनीन एवं लोकप्रिय बनाने का कार्य भी किया। कथा - साहित्य की इसी सार्वजनिक लोकप्रियता के सम्बन्ध में डॉ. जगन्नाथप्रसाद शर्मा' कहते हैं किसाहित्य के माध्यम से डाले जाने वाले जितने प्रभाव हो सकते हैं, वे रचना के इस प्रकार में अच्छी तरह से उपस्थित किये जा सकते हैं । चाहे सिद्धान्त प्रतिपादन अभिप्रेत हो, चाहे चरित्र चित्रण की सुन्दरता इष्ट हो, या किसी घटना का महत्त्व - निरूपण करना हो अथवा किसी वातावरण की सजीवता का उद्घाटन ही लक्ष्य बनाया जाये, क्रिया का वेग अंकित करना हो या मानसिक स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण करना इष्ट हो— सभी कुछ इसके द्वारा संभव हैं।” अत एव यह स्पष्ट है कि लोकप्रिय इस विधा का वैयक्तिक और समाजिक जीवन के शोधन और परिमार्जन के लिए आगमिक साहित्य से ही उद्गम हुआ है। व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उवासगदशा, अंतकृद्द्शा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र, तिलोयपण्णत्ती, उत्तराध्ययन सूत्र आदि आगमग्रंथ हैं, जिनमें कथाओं को सूत्ररूप में उल्लिखित किया गया है। २. जैन आगम - साहित्य के व्याख्यान - साहित्य में निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि एवं टीका ग्रन्थ प्रमुख हैं । इसी व्याख्यान - साहित्य में प्राकृत-कथाओं का बहुत कुछ विकास देखने को मिलता है। जहाँ आगम - साहित्य में बीज रूप सूत्र शैली में कथाओं का निर्देश 'वण्णओ' या नाम आदि के उल्लेख मात्र से कर दिया जाता था, वह व्याख्यान - साहित्य में वर्णनों की सजीवता से अनुप्राणित होकर विषय, उद्देश्य, वातावरण, पात्र, रूपगठन आदि के नवीनतम प्रयोगों सहित अभिव्यञ्जित किया जाने लगा था। व्याख्यान - साहित्य में वर्णित इन कथाओं का रूप श्रमण परम्परा से प्रभावित तो था ही साथ ही ऐतिहासिक, अर्धऐतिहासिक, धार्मिक, लौकिक आदि तत्त्वों को भी विवेचन करने वाला था। निर्युक्ति-साहित्य की भांति व्यवहारभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, दशवैकालिकचूर्णि, निशीथचूर्णि, सूत्रकृतांगचूर्णि, उत्तराध्ययन की सुखबोधाटीका आदि प्रमुख व्याख्या ग्रंथ हैं, जिनमें प्राकृत-कथाएँ प्राप्त होती हैं। अतः उद्गम स्थल आगम - साहित्य से कथा सरिता प्रवाहित होकर अपने कुछ-कुछ आकार को पाने लगी थी। ३. प्राकृत कथासाहित्य के बीज रूप मूलस्रोत का तीसरा बिन्दु हैलोक-जीवन। मानवजाति की आदिम परम्पराओं, प्रथाओं और उसके विभिन्न प्रकार के विश्वासों का लोकजीवन में विशेष महत्त्व है। अतः कथाओं में १. शर्मा जगन्नाथ, कहानी का रचना विधान, हिंदी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी, पृ.४-५ १७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only १९५६ www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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