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________________ १६० श्रमणविद्या-३ कष्ट होता है कि वह आत्मघात जैसे जघन्य कृत्य करने से भी नहीं चूकता है। अत: किसी जीव को कष्ट न हो इस दृष्टि से जीवन में अचौर्य नियम का पालन करना आवश्यक है। __आज देश की बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण पाने के लिये विविध कृत्रिम-साधनों का प्रयोग किया जा रहा है, जो जनसंख्या वृद्धि पर किञ्चित् नियन्त्रण तो करते हैं, किन्तु बदले में अनेक रोगों को भी दे जाते हैं। अत: कृत्रिम-साधनों का प्रयोग हानिकारक है। जैन-चिन्तकों ने जैनाचार के अन्तर्गत जीवन में ब्रह्मचर्य को पालन करने का उपदेश दिया है। वस्तुत: यह आत्मसंयम के माध्यम से जनसंख्या की वृद्धि पर तो रोक लगाता ही है, साथ ही अन्य विविध जानलेवा रोगों/हानियों से स्वत: बच जाता है। आज विश्व स्तर पर फैले एड्स जैसे जानलेवा रोगों पर भी ब्रह्मचर्य के माध्यम से नियन्त्रण पाया जा सकता है। जन सामान्य के असन्तोष का एक कारण आर्थिक विषमता भी है और इस विषमता को दूर करने के लिये आवश्यकता से अधिक वस्तुओं के संग्रह का निषेध जैन-चिन्तकों ने किया है। इसे जैन पारिभाषिक शब्दावली में अपरिग्रहवाद कहा गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा प्रवर्तित ट्रष्टीशिप का सिद्धान्त इसी अपरिग्रहवाद का नवीन संस्करण है, जिसकी प्रेरणा उन्हें जैन साधु रायचन्द्र जी से प्राप्त हुई थी। गाँधी जी रायचन्द्र जी को अपना गुरु मानते थे। इस प्रकार जैन-चिन्तनों द्वारा पल्लवित एवं पुष्पित ये पाँच सिद्धान्त हैं, जिनका केन्द्र-बिन्दु अन्तत: अहिंसा ही ठहरता है। इन्हीं पाँच को योगसूत्र में यम कहा गया है। इन पाँचों सिद्धान्तों के पालन की अपेक्षा एक साथ सम्पूर्ण समाज से करना एक दुःसाहस मात्र होगा, किन्तु इनको अपने व्यक्तिगत जीवन में उतारने का प्रयास किया जा सकता है उनके पालन की जिम्मेवारी ली जा सकती है और इसी प्रकार सभी व्यक्ति अपनी-अपनी जिम्मेवारी ले लें तो एक-एक इकाई मिलकर एक स्वस्थ समाज की संरचना करने में समर्थ हो सकेंगें और इस प्रकार अपनी-अपनी जिम्मेवारी निभाने से किसी भी व्यक्ति को किसी भी अन्य व्यक्ति से उक्त नियमों को पलवाने का भार नहीं उठाना पड़ेगा और सम्पूर्ण समाज को सुधारने की एक सुखद कल्पना की जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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