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________________ १४२ श्रमणविद्या-३ आई जिन्हें पश्चात् तिब्बत के रामोछे और रासा ठुल नाङ मठ में स्थापित कर राजा ने भोट देश में बौद्ध धर्म की स्थापना की। फिर ठीक पाँच पुश्तों के बाद ३८ वें धर्मराज णीसोङ देउचेन ने अपने पूर्वजों से प्रेरित होकर जन समुदाय के कल्याण हेतु कुछ कार्य-क्रम निर्धारित किया जिन में से विशेष कर समये नामक स्थान में एक भव्य विहार का निमार्ण किया ताकि उस में बौद्ध धर्म का अध्यन-अध्यापन किया जा सके। शीघ्र ही भूमि परीक्षण के पश्चात् विहार का निर्माण प्रारम्भ किया फिर भी चौंका देने वाली बात यह थी कि दिन में मनुष्यों के द्वारा किए गए काम को रात में भूत-प्रेत द्वारा नष्ट कर मिट्टी और पत्थर जहाँ का तहाँ पहुँचा दिया जाता था। इस लिए राजा, मन्त्रियों सभी ने चिन्तित होकर राजगुरु से सलाह लिया और उन के कथनानुसार आर्य देश के महापण्डित शान्तरक्षित को भोट देश में आमन्त्रित किया। ल्हासा से होकर समये के डाकमर राजमहल पहँचने पर आचार्य ने विहार निर्माण स्थल में भूमि अधिष्ठान किया और दस कुशल, अठारह धातु, द्वादस प्रतीत्यसमुत्पाद से सम्बन्धित धर्म उपदेश देने पर भूतप्रेत, पिशाच, राक्षस आदि ने क्रोधित हो कर ल्हासा के लाल पहाड़ पर वज्रपात किया। पर फङथङ राज महल बाढ़ में बह गया और अनेक तरह की महामारी फैलने से प्रजा में विद्रोह हो गया और धर्म को दोषी ठहराने लगे, इससे राजा, मन्त्री सभी ने चिन्तित होकर महापण्डित शान्तरक्षित से समाधान के लिये सलाह ली और उनके कथनानुसार आर्य देश से सर्वश्रेष्ठ उज्जैन के महागुरु आचार्यपद्मसंभव को आमन्त्रित करने से ही सभी की मनोकामना पूर्ण होगी। तत्काल राजा ने भसलनङ, नानम दोर्जे दूदजोम और सहयोगियों को निमन्त्रण और अनेक मूल्यवान रत्न के साथ आर्य देश भेजा। वे सब दूत मेड्युल नाम के स्थान पर पहुँचे, जो शायद नेपाल और तिब्बत की सीमा पर हैं। आचार्य पद्मसम्भव ऋद्धि शक्ति द्वारा उस स्थान पर पहले ही पहुँच चुके थे। दूतों को अनजान बन कर पूछने पर बताया कि वे लोग तिब्बत के राजा के आदेशानुसार भारत में आचार्य पद्मसंभव को निमन्त्रित करने के लिये जा रहे हैं। तो आचार्य पद्मसंभव ने अपने पैर बिना जमीन पर टिकाये टहलते हुए बताया कि, मैं कई दिनों से तुम सभी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। उन्होनें अटल विश्वास में निमन्त्रण तथा स्वर्ण इत्यादि भेंट के रूप में चढ़ाया तो सारे "स्वर्ण तिब्बत की ओर उछालते हुऐ भविष्य के लिये मंगल कामना के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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