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________________ १३४ श्रमणविद्या-३ इतिहासकारों ने कार्जङ्गल को वर्तमान में राजमहल, पण्डुवर्धन को वगुड़ा जिला या उसके नजदीक कोई स्थान, तमतर विहार को त्रिपुरा या नोयाखाली जिला, कर्ण सवर्ण को मुर्शिदावाद जिला और ताम्रलिप्ति को (वर्तमान मे तमलुक) मेदिनीपुर जिला के रूप में बताया है। युवाच्वाङ् (६३०-६४० ईस्वी) बङ्गाल में आकर कार्जङ्गल में ६-सात बौद्धविहार और तीन सौ भिक्षुओं को रहते हुये देखा था। उन्होंने पण्डुवर्धन में करीब तीस बौद्धविहार देखे थे जिनमें हीनयान और महायान सम्प्रदाय के लगभग तीन हजार भिक्षु रहते थे। युवाङ्गच्वाङ् ने राजधानी पुण्डवर्धन के समीप बौद्धविद्या निकेतन का भी उल्लेख किया है। जिसमें एक बहुत बड़ा सभा कक्ष और दो मञ्जिला इमारत थी। वहाँ पर सात सौ महायान भिक्षुओं का निवास स्थान भी था, पूर्व भारत के अनेक भिक्षु यहाँ आकर बौद्धविद्याओं का अध्ययन अध्यापन करते थे। उस बौद्ध विद्या निकेतन का नाम भासुविहार था। कर्णसुवर्ण में भी बौद्धों का बहुत प्रभाव था। यहाँ तीन विहारों में देवदत्त सम्प्रदाय के भिक्षु थे। उनके सिद्धान्त के अनुसार दुग्धपान निषेध था। यहाँ भी राजधानी के समीप 'रक्तवीति' या 'रक्तमृत्तिका' (उस मे थोड़ा सन्देह है कि वास्तव में क्या नाम है) नाम का एक बौद्धविद्यानिकेतन था, जिसमें बहुत दूर-दूर से प्रसिद्ध बौद्धभिक्षु आकर रहते थे। चीन देश के भिक्षुओं के लिए श्रीगुप्त ने एक बौद्धविहार का निर्माण कराया था जिसका उल्लेख इत्सिङ् के ५६ बौद्ध भिक्षुओं से सम्बन्धित ग्रन्थ में है। इस विहार का नाम 'मृगशिखावन विहार' था। प्रसिद्ध इतिहास विद् डॉ. बीरेन्द्र चन्द्र गांगुली ने इस विहार का स्थान मुर्शिदावाद जिला में उल्लेखित किया है। चीनी भ्रमणकारियों के अनुसार समतट में भी बौद्धधर्म का प्रभाव बहत अधिक था। सुवाच्वाङ् ने वहां पर तीस बौद्धविहार और थेरवादी सम्प्रदाय के दो हजार भिक्षुओं को रहते हुये देखा था। Hwuilun ने इसे एक प्रमुख बौद्धशिक्षा केन्द्र माना है। सेङ् चुङ् ने अपनी विवरणों में लिखा है कि समतट के बौद्ध राजा 'राजभट्ट' एक महान धार्मिक और त्रिरत्न के उपासक थे। ___ उपरोक्त चीनी यात्री के यात्रावृत्तान्त से यह ज्ञात होता है कि इन सब स्थानों में से ताम्रलिप्ति (वर्तमान में तमलुक) ही संस्कृत भाषा और बौद्धधर्म दर्शन के अध्ययन के लिए सबसे उत्तम स्थान था, तत्कालीन भौगोलिक पथनिर्देश से ज्ञात होता है। चीन से आने के लिए समुद्र पथ से ही भारत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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