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________________ ११८ श्रमणविद्या-३ अपने ध्वनि तथा गति-यति प्रभाव से ही वे इन भावों के उद्बोधन में समर्थ हैं। अत: कविशिक्षा इन छन्दों में झटिति पाटव का तथा अल्पतम परिवर्तन कर एक छन्द से दूसरे छन्द में रचना करने के कौशल का प्रतिपादन करती है। इस विषय पर अत्यधिक शोध की अपेक्षा अभी भी है। (ख) शब्द-सिद्धि विभिन शब्दों के प्रभाव का विश्लेषण तथा ऐसे शब्दों का अनुशासन जिनके प्रयोग से झटिति पादपूर्ति, समाससिद्धि या अलंकारसिद्धि अथवा एक से दूसरे छन्द या अलंकार में प्रवेश हो सके-यह कविशिक्षापरक साहित्य का दूसरा प्रमुख प्रतिपाद्य है। साथ ही विभिन एकाक्षरशब्दों के प्रयोग, विभिन्न शब्दों के तत्तद् अर्थों का काव्यरचना में विनियोग आदि का निर्देश प्राय: कविशिक्षा का प्रमुख प्रतिपाद्य रहा है। (ग) अलंकार-सिद्धि इस में विभिन्न अलंकारों की झटिति उपपत्तिपरक शब्दों का व्याख्यान मिलता है। साथ ही बहुप्रचलित अलंकारों के प्रयोग-पाटव में त्वरित नैपुण्य हेतु उपाय सुझाये गये हैं। (घ) वर्ण्य-विषय विभिन्न वर्णनीय विषयों के संबन्ध में ध्यान रखने योग्य बातों के अतिरिक्त किस वर्णन से कौन सा विषय अलंकृत और चमत्कृत हो सकता है इसका निर्देश भी इस शास्त्र का प्रमुख प्रतिपाद्य है। यद्यपि कविसमय (कवि सम्प्रदाय में प्रचलित मान्यताओं) का पर्याप्त उल्लेख यत्र-तत्र उपलब्ध है किन्तु उन्हें एकत्र कर उनमें परिवर्द्धन-परिवर्तन की संभावनाओं पर विचार करना संप्रति महत्त्वपूर्ण अपेक्षा है। (ङ) चित्रकाव्य चित्रकाव्यों को भले ही काव्यशास्त्र ने अधम काव्य के रूप में स्वीकार किया हो पर कवि शिक्षा के प्रमुख प्रतिपाद्यों में यह एक है। विभिन्न आकृतियों के रूप में छन्द रचना की इस विधा को कविशिक्षापरक कई ग्रंथो ने विशेष महत्त्व दिया है और इनपर सम्पूर्ण अध्याय की रचना की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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