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________________ ११६ श्रमणविद्या-३ चर्चा यहाँ अलंकार शास्त्र के विषयों से मिला हुआ ही है, इसकी स्वतंत्रत सत्ता नही है और यह ग्रंथ अन्य अनेक विषयों को भी समान महत्त्व देते हुए ही विवेचन करता है। अत: इसे कविशिक्षा का मौलिक ग्रंथ स्वीकार करने की अपेक्षा आकर ग्रंथ मानना ही अधिक उपयुक्त है। क्षेमेन्द्र (११वीं शती) ने औचित्य-विचार-चर्चा, सुवृत्तितिलक और कविकण्ठाभरण नाम के ग्रंथो की रचना की। औचित्यविचारचर्चा अधिक अंशो में साहित्यशास्त्रपरक ग्रंथ है जिसमें औचित्य को काव्य का अन्यतम कारण बताया गया है। सुवृत्तितिलक में छन्दों के वर्णन के साथ ही संभवत: छन्दों के प्रभाव का भी वर्णन है और उसमें छन्दों की स्वतन्त्र रूपसे रसोपकारकता का संकेत दिया गया है 'काव्ये रसानुसारेण वर्णनानुगुणेन च । कुर्वीत सर्ववृत्तानां विनियोग विभागवित् ।। (सु.ति.३विन्यास/७) साथ ही किस कवि का किस छन्द पर विशेष अधिकार है इसकी गणना भी वहाँ की गयी है। कविकण्ठाभरण में कवित्व की प्राप्ति अथवा उसमें उत्कर्षप्राप्ति के उपायों का वर्णन किया गया है। इस दृष्टि से यह अधिक अंशों में तथा मौलिक रूप में कविशिक्षापरक ग्रंथ माना जा सकता है। हेमचंद्र (११वीं शती) ने कविशिक्षा के उद्देश्य से काव्यानुशासन ग्रंथ लिखा जो प्राय: संग्रह ग्रंथ सा है। इसमें काव्यमीमांसा आदि से लम्बे-लम्बे अंश उद्धृत हैं। यद्यपि इसमें कविशिक्षापरक काफी सामग्री है पर यह काव्यशास्त्र की तत्त्वमीमांसा से मिली हई है, शिक्षापरक स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। वाग्भटद्वय के ग्रंथ वाग्भटालंकार और काव्यानुशासन भी इसी पद्धति पर लिखे गये ग्रंथ हैं। बारहवीं शती में जयमङ्गलाचार्य ने 'कविशिक्षा' नामक अपना ग्रंथ प्रस्तुत किया। पूर्णत: और स्वतंत्र रूप से कविशिक्षा पर लिखा गया यह प्रथम ग्रंथ है। इसमें एक श्लोक अणहिणामपटण के राजा सिद्धराज जयसिंह की प्रशंसा में मिलने से इसकी रचना बारहवीं शती पूर्वार्द्ध में होना सुनिश्चित है। तेरहवीं शती में विजयचंद्र ने 'कविशिक्षा' नामक ग्रंथ का प्रणयन किया। यह इस विषय पर गभीर और स्वतंत्र चिन्तन प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त इससे तत्कालीन इतिहास, भूगोल और मध्यकालीन भारत की साहित्यिक स्थिति की विशद् और महत्त्वपूर्ण सूचना प्राप्त होती है। इसी शती में अरिसिंह और अमरचंद्र यति ने काव्यकल्पलतावृत्ति, परिमलटीका और काव्यकल्पलतामञ्जरी की रचना की। इन ग्रंथो का विषय शुद्ध रूप से कविशिक्षा है। परिमल की रचना यद्यपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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