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________________ बोधिसत्त्व - अवधारणा के उदय में बौद्धेत्तर प्रवृत्तियों का योगदान प्राचीन ईरानी धर्म एवं पारसी संस्कृति का योगदान पश्चिम के अनेक प्राच्य विद्या विशारदों ने प्राचीन भारत के अनेक विचारों अवधारणाओं एवं ज्ञान की अन्य शाखाओं पर भारत से बाहर के प्रभाव को सिद्ध करने के प्रयास किए हैं। बोधिसत्त्व अवधारणा के सम्बन्ध में भी कुछ ऐसे ही प्रभाव बताए गए हैं। इस सम्बन्ध में सर्व प्रथम यह कह देना आवश्यक प्रतीत होता है कि यद्यपि अनेक महायानी अवधारणाएँ अपने स्थूल स्वरूप में सर्वथा नूतन सी दिखती हैं परंतु इनके अव्यक्त चिन्ह सम्प्रति उपलब्ध बौद्ध धर्म के प्रारम्भिक स्तरों में विद्यमान हैं। प्रधान रूप से ये अव्यक्त अंकुर ही कालान्तर में देश एवं परिस्थितियों के आनुषंगिक सहजात प्रत्ययों के सहारे सुस्पष्ट अवधारणाओं के रूप में पुष्पित एवं पल्लवित हुए। इस बात की भी प्रर्याप्त संभावना है कि कतिपय विदेशी अवधारणाओं के सम्पर्क के सहजात प्रत्यय भी इन धारणाओं के पूर्ण विकास में सक्रिय रूप में कार्यरत रहे हों । भारतीय बौद्ध धर्म का विकास भूखण्ड में प्रसार महान बौद्ध धर्म सम्राट अशोक के समय में हुआ। उसी समय यह पश्चिमोत्तर में गन्धार आधुनिक अफगानिस्तान के उन भूखण्डों तक पहुँचा। जहाँ प्राचीन पारसीक संस्कृति का पहले से ही कुछ न कुछ प्रभाव था ही । ५३० ई. पू. ३३० ई. पू. तक गान्धार एक पारसी प्रदेश था। साइरस के समय से सिकन्दर के आक्रमण के काल तक पारस का अपना विशाल साम्राज्य था। ५१८ ई. पू. के लगभग दारियस प्रथम ने सिन्धुघाटी को अपने अधीन कर लिया था । अनेक शताब्दियों तक प्राचीन पारसीक संस्कृति ने एशिया के अनेक राष्ट्रों को प्रभावित किया। फिर भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश तो पारस के पडोसी ही थे। बी. ए. स्मिथ के अनुसार सारनाथ का अशोक का सिंह स्तम्भ तथा पाटलिपुत्र का मौर्य प्रासाद प्रारम्भिक पारसीक संस्कृति के संसूचक हैं १ । सूर्य की आराधना प्राचीन ईरान की संस्कृति का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू था। वैसे सूर्य तो संसार को अधिकतर आदिम सभ्यताओं में आराध्य देव रहे हैं परंतु मिस्र एवं ईरान में सूर्योपासना को एक सुस्पष्ट धार्मिक स्वरूप प्राप्त हुआ । ईरान की सूर्योपासना के प्रभाव के कुछ चिन्ह महायान बौद्ध धर्म के कतिपय पतों में पहचाने जा सकते हैं। तथा महायान देव कुल में कल्याणमय १. पी. की. एन. मायर्स जेनेरल हिस्ट्री पृ. ६१ । २. बी. ए. स्मिथ अशोक पृ. १४० Jain Education International १०५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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