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________________ श्रमणविद्या- ३ अप्रभावित नहीं रहे होंगे। विशेष रूप से अवलोकितेश्वर - बोधिसत्त्व की जो अवधारणा है उसके उदय एवं विकास में शिव पाशुमत या माहेश्वर शाखा का विशेष योगदान होना चाहिए। दोनों के कलात्मक अंकनों में भी अद्भुत साम्य है। तीन नेत्र एकादश मुख तथा त्रिशूल आदि के अंकनो का साम्य भी मात्र आकस्मिक नहीं हो सकता । अवलोकितेश्वर महाकरुणा का मूर्तिकरण है तो शिव भी हलाहल विष से जल रहे जगत् के परित्राता के रूप में ख्यात हैं। १०२ वैदिक धर्म के ब्राह्मण पुरोहितों ने शनै: शनै: भागवत एवं शैव जैसे दो भक्ति आन्दोलनो को आत्मसात कर लिया एवं बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का सामना करने के निमित्त इनका उपयोग किया। ई. पू. द्वितीय शतक में शुंगराजवंश की छत्रछाया में ब्राह्मण धर्म पुनर्जागरण का उद्भव हुआ । फलस्वरूप बौद्धों को जनप्रियता के निमित्त प्रचार के नवीन साधनों का समावेश करना पड़ा। जैसा कि कुछ आधुनिक विद्वानों की मान्यता है । द्वितीय शताब्दी ईसवी पूर्व बौद्ध धर्म के लिए एक अत्यन्त समस्यामय समय था । मौर्यों के पतन के उपरान्त इसे राज्याश्रय प्राप्त नहीं हो रहा था तथा इसे उन ब्राह्मणों के सामना करना पड़ रहा था जिन्होंने भागवत एवं शैव धर्मो को आत्मसात् कर अधिकाधिक लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी । प्रारम्भिक बौद्ध धर्म के स्तम्भ अर्हत्व का भी भिक्षु अधिक एकान्तसेवी एवं अन्तमुर्खी होने लगे थे। ऐसी परिस्थितियों में महायान बौद्ध शाखा के संस्थापकों को विष्णु एवं शिव जैसे लोकप्रिय देवताओं तथा इनके अवतारों के बौद्ध प्रतिद्वन्दियों के रूप में परम कारुणिक बोधिसत्त्वों को एक नूतन अवधारणा का विकास करना पड़ा। जिसके द्वारा उन्होंने बड़ी ही सफलता के साथ अपने धर्म का नए क्षेत्रों में प्रसार किया एवं इसे अधिक से अधिक लोकप्रिय बनाया । २. जैन परम्परा एवं बोधिसत्त्व सिद्धान्त बौद्ध एवं जैन दोनों ही श्रमण धर्म है तथा अनेक वातों में इनमें साम्य है। साथ ही प्राचीनता की दृष्टि से जैन धर्म बौद्ध धर्म से कुछ अधिक प्राचीन १. इ. डब्लयू होपिकन्स इण्डिया न्यू एण्ड ओल्ड प. ५१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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