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________________ १०० श्रमणविद्या-३ किया जाता तब भी बुद्ध से पर्याप्त पूर्वकाल में वासुदेव एवं पाशुपत जैसे सम्प्रदायों में वासुदेव कृष्ण आदि के प्रति भक्ति तत्त्व की विद्यमानता के अनेक साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक प्रमाण विद्यमान हैं। छन्दोग्य उपनिषद में कृष्ण का उल्लेख, ईशोपनिषद में उपास्य के रूप में ईश्वर का वर्णन, श्वेताश्वतर में भक्ति सिद्धान्तों की चर्चा आदि से भक्ति साधना की किसी न किसी धारा कि विद्यमानता स्थापित हो जाती है। 'वासुदेवार्जुनाभ्यां वुन्' ४.३.९८ में उपास्य के रूप में पृथक सूत्र में वासुदेव का उपन्यसन यह स्पष्टरूप से धोतित करता है कि पाणिनि के समय तक वासुदेव कृष्ण का दैवीकरण हो चुका था तथा वे एक उपास्य देव बन चुके थे। यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा शूरसेन प्रदेश में हेराक्लीज या कृष्ण की पूजा का अर्थ वर्णन वि. श. ई. ५० के वेसनगर अभिलेख में ग्रीक ह्रलियोदोरस की भागवत उपाधि तथा स्वयं पालि महानिदेस में वासुदेववस्तिका का होन्ति के रूप में वासुदेव सम्प्रदाय के उल्लेख यह प्रदर्शित करने में सक्षम हैं कि वासुदेव कृष्ण बुद्ध से पूर्ववर्तीकाल से ही उपास्य बन चुके थे और द्वितीय शताब्दी ई. पू. तक तो यह एक प्रमुख भक्ति सम्प्रदाय बन गया था, जिसका प्रभाव पश्मिोत्तर भारत में यूनानी, आदि विदेशी जातियों पर भी पड़ने लगा था और जिसका एक केन्द्र शूरसेन या मथुरा के आसपास भी था। यह अत्यन्त स्वाभाविक प्रतीत होता है कि पश्चिमोत्तर में पहुचते ही बौद्धधर्म को वासुदेव या भागवत सम्प्रदाय के बढ़ते हुए प्रभाव का सामना करना पड़ा हो एवं उस काल एवं उस देश की परिस्थितियों में अधिक लोकप्रिय होने के लिए भागवतों के भक्ति तत्त्व का स्वीकरण कर उपास्य के रूप में बोधिसत्त्वों के नूतन स्वरूप की कल्पना करनी पड़ी हो। अश्वघोष जो कि पश्चिमोत्तर भारत में थे इस बात के ज्वलन्त निदर्शन है कि उनके समय तक बुद्ध भक्ति एक नए स्वरूप में आ चुकी थी, आगे भले ही बोधिसत्त्वीय आदर्श का समस्त रूपेण उपस्थापन उनके समय तक न हुआ हो। इस प्रकार इस कथन में पर्याप्त सत्य है कि इस प्रकार प्रभूत ऐतिहासिक साक्ष्य हमें इस बात से मिलते हैं कि बुद्धधर्म के उदय की शताब्दियों से लेकर वासुदेव पूजा किसी न किसी रूप में भारत में चली आ रही थी और उससे निश्चित निष्कर्ष किसी न किसी मात्रा में हम यह निकाल ही सकते हैं कि द्वितीय शताब्दी ई. पू. जब महायान में बद्ध भक्ति का उदय हुआ तो उसने किसी न किसी प्रकार ज्ञात या अज्ञात रूप से वासुदेव सम्प्रदाय से अवश्य प्रेरणा प्राप्त की । १. बौद्धधर्म तथा अन्य भारतीय दर्शन भाग-१ पृ. ५८९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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