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________________ बोधिसत्त्व-अवधारणा के उदय में बौद्धेतर प्रवृत्तियों का योगदान डॉ. उमाशङ्कर व्यास नव नालन्दा महाविहार, नालन्दा बोधिसत्त्वीय आदर्श के उद्भव एवं उसके विकास में बौद्ध धर्म से बाहर के प्रभावों को खोजने का प्रयास कतिपय आधुनिक विद्वानों ने किया है। यहां यह स्मरणीय है कि महायान का ऐसा कोई भी सिद्धान्त नहीं है जिसका मूल बीज बौद्धधर्म के प्रारम्भिक काल में न खोजा जा सके। महायान में इन्हीं बीजों का अंकुरण एवं पल्लवन तद्तयुगों एवं प्रदेशों की परिस्थितियों के अनुरूप हुआ है। साथ ही यह भी नितान्त स्वाभाविक है कि कोई भी धार्मिक चिन्तन अपने आस-पास की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। एक जीवित एवं स्पन्दनशील विचारधारा अपनी समकालीन अन्य विचारधाराओं से टक्कर लेती हुई जब आगे बढ़ती है तो अनिवार्य रूप से प्रतिद्वन्दी चिन्तनों से वह सर्वथा असंपृक्त नहीं रह पाती। संसार के अधिकतर चिन्तनों विशेषत: चिन्तनों के विकास के इतिहास में ऐसी ही प्रवृत्तियां कार्यरत दिखलाई पड़ती हैं। बौद्धधर्म का अभ्युदय एवं विकास जिस भारतीय भूमि में हुआ, वहाँ इसके साथ वैदिक, जैन, द्रविड तथा अन्यान्य अनेक गौण धार्मिक चिन्तनों का प्रचलन थी ही। भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में पहुँचनें पर जहाँ एक ओर भागवतों एवं पाशुपतों से इस विचारधारा को टक्कर लेनी पड़ी वहीं इनका सम्पर्क यूनानी, पारसीक एवं कुछ अन्य संस्कृतियों के साथ हुआ। इस सम्पर्क का प्रभाव जहां गंधार शिल्प के अभ्युदय के साथ भारतीय कला के क्षेत्र में युगान्तकारी परिवर्तन लेकर उपस्थित हुआ वहीं इसका प्रभाव धार्मिक चिन्तन के क्षेत्र में विशेषत: बोधिसत्त्वीय आदर्श के अवतरण एवं महायान के उद्भव में कहां तक हुआ प्रस्तुत में यही विचारणीय प्रसंग है। साथ ही सुदूर एवं अतीत से भारतीय भूमि में फल फूल रहे द्रविड़ एवं वैदिक चिन्तनों के सम्पर्क का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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