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________________ श्रमणविद्या- ३ मग्गामग्गस्स कुसलो, कतकिच्चो अनासवो । बुद्धो अन्तिम सारीरो, महापञ्ञ महापुरिसो ति च ।। अर्थात् जो जानकार हैं, जिन्होंने सब प्राणियों को मृत्यु- पाश से मुक्त करने वाले, देव - मनुष्यों के हितकर, ज्ञेय धर्म को प्रकाशित किया है, जिन्हें देखकर तथा जिनका उपदेश सुनकर बहुजन प्रसन्न होते हैं। जो मार्ग - अमार्ग के विषय में कुशल है, कृतकृत्य है, अनास्रव है, जो अन्तिम शरीरधारी बुद्ध है, ऐसे व्यक्ति को महाप्रज्ञावान् एवं महापुरुष कहा जाता है। ९० ऐसे प्रज्ञावान् महापुरुष के गम्भीर दर्शन अमृतोपम निर्वाण के वारे में विवेचन करने से पूर्व इनके द्वारा प्रवर्तित धर्मचक्र के सर्वप्रथम धर्मोपदेश चार आर्यसत्य एवं मध्यम मार्ग (अष्टाङ्ग मार्ग ) के बारे में संक्षिप्त चर्चा करना प्रस्तुत निबन्ध में समीचीन होगा। क्योंकि चार आर्य सत्यों में जो 'दुःखनिरोधगामिनी प्रतिपद' आर्यसत्य है, वही मध्यम मार्ग है। यह मध्यम मार्ग ही नेत्र खोल देने वाला, सही उपाय बताने वाला चित्तवृत्तियों के उपशम के लिए, अभिज्ञा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए, तथा निर्वाण तक पहुँचने के लिए सर्वोत्तम मार्ग है । बौद्धधर्म में शील, समाधि, प्रज्ञा का यत्र तत्र सर्वत्र विवेचन किया गया है; क्योंकि मार्ग में आरूढ़ होने के लिए यही तीन मुख्य साधन हैं। अष्टाङ्गिक मार्ग में ये तीनों समाहित हैं। विना मध्यम मार्ग पर आरूढ़ हुए, व्यक्ति अपने जीवन में कभी शान्ति नहीं ला सकता, और न ही आचारसम्पन्न योगसम्पन्न एवं प्रज्ञा सम्पन्न हो सकता है। यह मार्ग हमें इन्द्रियविलास की रतता एवं आत्मप्रपीड़न इन दोनों अतिवादों से बचाकर एक सुखी जीवन की प्राप्ति कराता है। " एसो व मग्गो नत्थञ्ज, दस्सनस्स विसुद्धिया । एतं हि तुम्हे पटिपज्जथ, मारस्सेतं पमोहनं ।। " यह 'निर्वाण' शब्द, नि + वान, इन दो शब्दों से बना है। यहां 'वान' शब्द 'तृष्णा' का द्योतक है, और 'नि' शब्द का अर्थ 'निस्सरण' है। अतः 'वानतो निक्खन्तं ति निब्बाणं' अर्थात् वान (तृष्णा) से निर्गत धर्म ही निर्वाण १. अंगुत्तर निकाय, भाग ४, पृ. ४० । २. चक्खुकरणी, ञणकरणी, उपसमाय, अभिज्ञाय, सम्बोधाय, निब्बाणाय संवत्तति । सच्चसंगहो । ३. धम्मपद २०/२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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