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________________ ८७ अभिधर्म और माध्यमिक (क) हीनयान अभिधर्म का विषय अभिधर्म पिटक किसी भी यान का हो वह संसार से मुक्ति होने का उपाय या मार्ग प्रतिपादित करता है। उसमें मूलवस्तु उन आलम्बनों को कहते हैं; जिनका आलम्बन साधक करते हैं। उस आलम्बन के दो प्रकार हैं। यावत् आलम्बन तथा यथार्थ आलम्बन। स्कन्ध, आयतन, धातु, इन्द्रिय, कारण तथा हेतु आदि यावत् विषय हैं। उन विषयों का आलम्बन करते हुए जिन मार्गों पर चलना है; वह मार्ग सम्भार मार्ग आदि पाँच मार्ग हैं। इन मार्गों की भावना करने पर जो फल प्राप्त होता है; उसमें सामान्य फल ध्यान समाहित आदि होते है तथा असाधारण फल निर्वाण या निरोध है। संसार से मुक्ति होने में संसार का मूल अविद्या का प्रहाण आवश्यक है। वह यावत् तथा यथार्थ ज्ञान या प्रज्ञा पर निर्भर है। अत: अधिप्रज्ञा शिक्षा ही अभिधर्म सूत्रादि का मुख्य विषय है। (ख) महायान अभिधर्म पिटक का विषय महायान अभिधर्म पिटक का विषय भी अधिप्रज्ञा शिक्षा है जैसा ऊपर बताया है। परन्तु प्रज्ञा का स्वरुप तथा प्रतिपादन करने की पद्धति बिल्कुल भिन्न है। प्रज्ञापारमितासूत्रों तथा मूलमाध्यमिक कारिका आदि महायान अभिधर्म आगमों द्वारा प्रतिपादित प्रज्ञा वह प्रज्ञा है जो प्रतीत्यसमुत्पाद तथा शून्यता को यथावत जानती है और जो विषय विषयी अद्वैत हैं। अभिधर्म आगम इस तथ्य को असंख्य युक्तियों द्वारा प्रतिपादित करते हैं। क्योंकि संसार का असली मूल वह अविद्या है जो पुद्गल तथा धर्मों को स्वभावत: सत् समझती है। जब तक इसका उन्मूलन नहीं होता; संसार से मुक्ति नहीं होती। अत:असली प्रज्ञा शिक्षा वह है जो पुद्गल नैरात्म्य और धर्मनैरात्म्य को साक्षात जानती है। उस प्रकार की प्रज्ञा को मुख्यरूप से प्रतिपादित करने वाले प्रज्ञापारमिता सूत्र असली अभिधर्म पिटक हैं और उनकी सही व्याख्या करने वाले माध्यमिक शास्त्र असली अभिधर्म शास्त्र हैं। हीनयान अभिधर्म पिटक केवल सांस्कृतिक विषयों का प्रतिपादन करते हैं; पर महायान अभिधर्म पिटक दोनों सत्यों का यथावत प्रतिपादन करते हैं। इसलिए हम यह मानते हैं कि स्थविरवाद के अभिधर्मसूत्र सर्वास्तिवाद के सात अभिधर्म शास्त्र तथा उनकी व्याख्या महाविभाष्य आदि एक सीढ़ी की तरह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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