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________________ अभिधर्म और माध्यमिक ८५ महायानी पिटकों के विषय में न केवल आधुनिक काल में, अपि तु अर्वाचीन विद्वानों के मत भी भिन्न थे। यथा हीनयानी सिद्धान्त वादियों ने महायानी सूत्रों को बुद्धवचन नहीं माना। जिस प्रकार "सप्तामिधर्मग्रन्थ' के बुद्धरचना होने में या नहीं होने में विवाद हुआ; उसी प्रकार महायान सूत्रों के बारे में पहले से बाद-विवाद था। इसलिए महायानी आचार्यों ने महायान को बुद्धवचन सिद्ध किया है। आचार्य नागार्जुन ने कहा है कि धर्मों की नि:स्वभावता न केवल महायान पिटकों में ही प्रदर्शित है, अपि तु हीनयान आगमों में भी प्रदिष्ट है। अत: महायानसूत्र बुद्धवचन सिद्ध होता है कात्यायनाववादे य अस्ति नास्ति चोभयम् । प्रतिषिद्धं भगवता भावाभाव विभाविना ।। सूत्रालंकार का प्रथम परिच्छेद ही महायान सिद्ध करने के लिए लिखा है। हीनयानी कहते थे कि महायानसूत्र बुद्धवचन नहीं है, अपितु बाद में दूसरों ने बनाया है। इनके विषय तथा शब्दावली आदि सभी मूल बुद्ध वचनों से भिन्न हैं आदि। उनके कथनों के उत्तर में सूत्रालंकार में कहा है कि यदि महायान सूत्र बुद्धवचन न होकर किसी दूसरे ने कालान्तर में रचा है तो बुद्ध स्वयं इसके विषय में पहले से ही व्याकृत कर देते; परन्तु ऐसा व्याकृत नहीं किया गया। महायान सूत्र तथा हीनयान सूत्र एक ही साथ अस्तित्व में आए। महायान सूत्रों में नि:स्वभावता की जो देशना है; वही क्लेशों का प्रतिपक्ष है। जिन सूत्रों को शब्दवत स्वीकार नहीं किया जा सकता; उनका अर्थ अन्यथा लेना है तथा वे नेयार्थ सूत्र हैं। आदवव्याकरणात्समप्रवृत्तेरगोचरासिद्धेः । भावाभावेऽभावात्प्रतिपक्षत्वाद्रुतान्यत्वात् ।। इत्यादि विस्तार पूर्वक है। भावविवेक ने मध्यमक हृदय तथा तर्क ज्वाला में महायानसूत्रों के बुद्धवचन होने के बारे में अतिविस्तृत तर्क प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने कहा है कि महायान सूत्रों का यद्यपि तीनों संगीतियों में संगायन नहीं किया है; तथापि उनका संगायन हुआ है। उनके संगायनकर्ता आर्य मञ्जुश्री आदि हैं। ये श्रावकों का गोचर ही नहीं है अत: उनका संगायन श्रावक नहीं कर सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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