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________________ परिचय सूत्र, विनय एवं अभिधर्म के उद्भट विद्वान् एक पौराणिक महास्थविर द्वारा विरचित यह प्रकरण " जातिदुक्ख विभागो" अथवा " कार्याविरतिगाथायो" इस नाम से प्रसिद्ध है । इस प्रकरण के रचयिता के जीवन के सम्बन्ध में कोई विशेष उल्लेख उपलब्ध नहीं होता । " विभागं जातिदुक्खस्स पवक्वामी समासतो " प्रकरण की इस प्रारम्भिक गाथा से प्रतीत होता है कि इस प्रकरण का "जातिदुक्खविभागो" यह नाम ग्रन्थकार को अभिप्रेत है तथा ग्रन्थ के अन्त में " कायविरतिगाथायो" इस कारिकांश के द्वारा व्याख्याकार ने इस प्रकरण का " कायविरतगाथा" यह द्वितीय नाम भी स्वीकार किया है । इस प्रकरण में कुल २७४ गाथाएं हैं । यह तथ्य प्रकरण के “कायविरतिगाथायो द्वे सता चतुसत्तति" इस गाथावचन से स्पष्ट है । किन्तु श्रीलङ्का के अनेक भागों में उपलब्ध विभिन्न संस्करणों में २७२ गाथाएं ही उपलब्ध होती हैं । अतः विद्वानों ने इस प्रकरण की इतनी ही संख्या को प्रामाणिक मान लिया है । इस प्रकरण के दो खण्ड हैं । पहले खण्ड का नाम " जातिदुक्खुद्देस" तथा द्वितीय खण्ड का नाम "सुञ्ञतुद्देस" है । जातिदुःख का विभाजन एवं शून्यताप्रतिसंयुक्त धर्मों का वर्णन बौद्धदर्शन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय हैं। अत: शोध की दृष्टि से यह प्रकरण-ग्रन्थ अत्यधिक उपादेय है, ऐसा हम समझते हैं । यह ग्रन्थ गृहस्थ एवं प्रवजित दोनों के लिए उपयोगी है, ऐसा सोच कर बुद्धशासन की समुन्नति के लिए कलुतर सुमित्रारामाधिवासी कलुतर ज्ञानरतन स्थविर से त्रुटियों का परिमार्जन करा कर कलुतर डी० डी० फुनसेका और पयागल के० जे० करुणारतन ने मिलकर इस ग्रन्थ का सिंहली में मुद्रण कराया था । उसी के आधार पर यह देवनागरी संस्करण तैयार किया गया है । Jain Education International - भदन्त डी. सोमरतन थेरो For Private & Personal Use Only संकाय पत्रिका - २ www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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