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________________ श्रमण परम्परा में संवर ११ दुःख समुत्पाद को ही नहीं जानता, वह दुःखनिरोध -संवर का कथन कैसे कर सकता है । एक अन्य प्रसंग में कहा गया है कि साधु को पंच संवरसंवृत समिति में सर्वदा सावधान रहकर, आसक्तों में अनासक्त होकर मोक्षपर्यन्त परिव्रजित रहना चाहिए | 39 अन्य स्थल पर सम्यक् क्रियावाद के प्ररूपक एवं अनुगामी साधक की अर्हताएँ बताते हुए कहा गया है कि क्रियावाद को वही बता सकता है जो जीवों की नाना प्रकार की पीड़ा को जानता है, आस्रव और संवर को जानता है तथा दुःख और निर्जरा को जानता है । ४° क्रिया स्थानों के वर्णन प्रसंग में हिंसादण्ड नामक तृतीय स्थान के अधिकारी के स्वरूप एवं वृत्ति का कथन करते हुए कहा गया है कि वे यथानाम श्रमणोपासक होते हैं, जिन्होंने जीव अजीव के स्वरूप को जान लिया है, पुण्य-पाप के विवेक को प्राप्त कर लिया है, जो आस्रव, संवर, वेदना, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बन्ध और मोक्ष के ज्ञान में कुशल हैं और इसप्रकार आत्मलीन हो विचरण करते हैं ।" इसी प्रकार का विवरण नालन्दा के लेप गाथापति के वर्णन में (सूत्र० २ २ ७२ ) तथा भगवइ में तुंगिका के श्रमणोपासकों के वर्णन में प्राप्त होता है (भग० २।९४) । अन्यत्र कहा गया है कि लोक- अलोक, जीव-अजीव आदि की तरह आस्रव और संवर का भी अस्तित्व है, ऐसा श्रद्धान करना चाहिए । ४२ गोशालक के आक्षेपों के उत्तर में आर्द्रकमुनि कहते हैं कि पांच महाव्रत और अणुव्रतों की तरह पूर्ण श्रामण्य के लिए पांच आस्रव तथा संवर का प्रतिपादन किया गया है । ४३ ठाणाङ्ग में संवर शब्द चौदह प्रसंगों में प्रयुक्त हुआ है। यहां पर अपेक्षा दृष्टि से क्रमश: एक से लेकर दस संख्याओं तक संवर के भेद गिनाये गये हैं । प्रथम स्थान में कहा गया है कि एक आत्मा, एक अनात्मा आदि की तरह अस्तित्व या तात्त्विक दृष्टि से संवर भी एक है ।४४ दूसरे स्थान में कहा है कि लोक में जो कुछ है ३८. सूत्रकृताङ्ग १।१।६९। ३९. वही, १1१1८८ ! ४०. वही, १।१२।२१। वही, २।२७२, २|७|४ | वही, २/५/१७। ४१. ४२. ४३. ४४. Jain Education International महत्वए पंच अणुव्वए य तहेव पंचासव संवरे य । विरइ इह स्समणियम्मि पण्णे लवावसक्की समणेत्ति बेमि ॥ - वही, २ / ६ / ६ एगे संवरे | ठाणाङ्ग १ / १४ । For Private & Personal Use Only संकाय पत्रिका - २ www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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