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________________ १४४ श्रम विद्या व्यंजनावग्रह (विचारपूर्वक अर्थग्रहण) की अवस्था में साकारोपयोगी ही होता है, ऐसा जानना चाहिए । 110 ) कर्मभूमि में उत्पन्न हुआ और मनुष्यगति में वर्तमान जीव ही नियम से दर्शनमोह की क्षपणा का प्रस्थापक (प्रारम्भ करने वाला) होता है । किन्तु उसका निष्ठापक (पूर्ण करने वाला) चारों गतियों में पाया जाता है 111) मिथ्यात्व वेदनीय कर्म के सम्यक्त्व प्रकृति में अपवर्तित (संक्रमित) किये जाने पर जीव दर्शनमोह की क्षपणा का प्रस्थापक होता है । उसे जघन्य तेजोलेश्या में वर्तमान होना चाहिए । 112) अन्तर्मुहूर्त काल तक दर्शनमोह का नियम से क्षपण करता है | दर्शनमोह के क्षीण हो जाने पर देव और मनुष्य गति-सम्बन्धी नामकर्म की प्रकृतियों का और आयुकर्म का स्यात् बन्ध करता है । 113 ) दर्शनमोह की क्षपणा में प्रवर्तमान (प्रस्थापक) जीव जिस भव में प्रस्थापक होता है, उससे अन्य तीन भवों को नियम से उल्लंघन नहीं करता है । दर्शनमोह क्षीण हो जाने पर तीन भव में नियम से मुक्त हो जाता है । 114) मनुष्यों में क्षीणमोही नियम से संख्यात सहस्र होते हैं। शेष गतियों में क्षीणमोह- क्षायिक सम्यकदृष्टि जीव नियम से असंख्यात होते हैं । 115 ) संयमासंयम की लब्धि तथा चरित्र की लब्धि, भवों की उत्तरोत्तर वृद्धि और पूर्वबद्ध कर्मों की उपशामना इस अनुयोगद्वार में वर्णनीय है । 116) उपशामना के कितने भेद हैं ? किस-किस कर्म का उपशम होता है ? किस अवस्था में कौन कर्म उपशान्त रहता है और कौन कर्म अनुपशान्त रहता है ? (117) चारित्र मोह की स्थिति, अनुभाग और प्रदेशाग्रों का कितना भाग उपशमित होता है ? कितना भाग संक्रमण और उदीरणा करता है और कितना भाग बंध को प्राप्त होता है ? 118) चरित्रमोह की प्रकृतियों का कितने काल पर्यन्त उपशमन होता है ? कितने काल पर्यन्त संक्रमण, उदीरणा होती है, तथा कौन कर्म कितने काल तक उपशान्त या अनुपशान्त रहता हैं ? 119) कौन करण व्युच्छित्र होता है ? कौन करण अव्युच्छिन्न होता है ? कौन करण उपशान्त रहता है ? कौन करण अनुपशांत रहता है ? संकाय पत्रिका - २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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