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________________ कसा पाहुतं १३७: 40 एक-एक प्रतिग्रह, संक्रम तथा तदुभय स्थान में गति आदि मार्गणा स्थान 41 ) युक्त जीवों का मार्गण करने पर भव्य और अभव्य जीव कितने स्थान पर होते मार्गणा युक्त जीव किन-किन स्थानों पर होते हैं ? विशिष्ट जीवों के किस गुणस्थान में कितने संक्रम स्थान तथा प्रतिग्रह स्थान होते हैं तथा किस संक्रम या प्रतिग्रह स्थान की समाप्ति कितने काल में होती है ? हैं तथा गति आदि शेष औयिकादि पाँच भाव 42) नरकगति, अमरगति, संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचों में सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस और इक्कीस प्रकृतिक पाँच ही संक्रमस्थान होते हैं । मनुष्यगति में समस्त तथा शेष एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी जीवों में सत्ताईस, छब्बीस और पच्चीस - प्रकृतिक, ये तीन ही संक्रमस्थान होते हैं । 43) मिथ्यात्व गुणस्थान में सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस और तेईस प्रकृतिवाले चार संक्रमस्थान, मिश्र में पच्चीस और इक्कीस ये दो संक्रमस्थान और सम्यक्त्व युक्त गुणस्थानों में तेईस संक्रमस्थान होते हैं । संयमयुक्त प्रमत्तसंयतादि में सत्ताईम, छब्बीस, तेईस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिक पाँच संक्रमस्थान होते हैं | अविरत में सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस, बाइस, और इक्कीसप्रकृतिक ये छह संक्रमस्थान होते हैं । 44) शुक्ललेश्या में तेईस संक्रमस्थान हैं । तेजोलेश्या और पद्मलेश्या में सत्ताईस से इक्कीस तक के छह संक्रमस्थान, कापोत नील और कृष्ण लेश्या में सत्ताइस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस और इक्कीस प्रकृतिवाले पाँच संक्रमस्थान कहे गये हैं । 45 ) अपगत नपुंसक -स्त्री एवं पुरुष वेदों में आनुपूर्वी से - क्रमशः अठारह, नौ, एकादश तथा त्रयोदश संक्रमस्थान होते हैं । 46) क्रोधादि चारों कषायों से उपयुक्त जीवों में आनुपूर्वी से सोलह, उन्नीस, तेईस और तेईस संक्रमस्थान होते हैं । 47 ) मति, श्रुत और अवधिज्ञानों में तेईस संक्रमस्थान होते हैं । एक अर्थात् मन:पर्यय में पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक स्थानों को छोड़कर शेष इक्कीस क्रमस्थान होते हैं । कुमति-कुश्रुत और विभंग, इन तीन अज्ञानों में सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस और इक्कीस - प्रकृतिक पाँच संक्रमस्थान हैं । 48 ) आहारक एवं भव्यों में तेईस संक्रमस्थान होते हैं । अनाहारकों में सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस और इक्कीस - प्रकृतिक पाँच संक्रमस्थान होते हैं । अभव्यों में एक पच्चीस - प्रकृतिक स्थान ही होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only संकाय पत्रिका - २ www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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