SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण विद्या पन्द्रह अधिकारों की मूल गाथाएँ भाष्य गाथाएँ सम्बन्ध गाथाएँ अद्धापरिमाण निर्देशक गाथाएँ क्रमवृत्ति से सम्बद्ध गाथाएँ नाम निर्देश करने वाली गाथाएँ ९२ ८६ १२ ६ ३५ २ योग २३३ जयधवला टीका के रचयिता वीरसेनाचार्य के अनुसार इन समस्त गाथाओं के रचयिता आचार्य गुणधर थे । Jain Education International ९९ कसायाहु की गाथाओं पर विचार करते हुए स्व० पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने लिखा है कि क्या इन गाथाओं में कुछ गाथाएँ नागहस्ति कृत भी हैं ? इस प्रश्न पर विचार करने से ज्ञात होता है कि जयधवला के अनुसार वीरसेन स्वामी से पहले होने वाले कुछ टीकाकारों का ऐसा मत रहा है कि एक सौ अस्सी गाथाओं के सिवाय जो शेष त्रेपन गाथाएँ हैं, वे नागहस्ति कृत हैं । वीरसेन ने इसका निराकरण किया है । "अस दिसदगाहाओ मोत्तूण अवसेससंबंद्धापरिमाणणिद्दे ससंकमणगाहाओ जेण नागहत्थिआइरियकथाओ तेण 'गाहासदे आसीदे' त्ति भणिण णागहत्थिमाइ - रिएण पइज्जा कदा इदि के वि वक्खाणाइरिया भणति, तण्ण घडदे । ७ For Private & Personal Use Only कसा पाहुड का स्रोत और परम्परा कसायपाहुड के सम्बन्ध में जो जानकारी उपलब्ध है, उससे ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में जैन श्रमण परम्परा में इसकी सर्वसम्मत मान्यता रही । सम्भवतया कर्मसिद्धान्त और कसायपाहुड के विशेषज्ञ आचार्यों की विशेष परम्परा थी । वर्तमान में कसा पाहुड नाम से जो गाहासुत्त उपलब्ध हैं, उनका एकमात्र आधार बीरसेन - जिनसेन की जयधवला टीका है। इस टीका में कसायपाहुड के 'गाहासुत्त' तथा यतिवृषभकृत 'चुण्णिसुत्त' समाहित हैं। इस टीका से कसायपाहुड की प्राचीन परम्परा के सन्दर्भ में और भी महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है । कसा पाहुड के स्रोत के विषय में कहा गया है कि 'पाँचवें पूर्व में दसमी वस्तु में 'पेज्ज' पाहुड में कसायपाहुड है ।' (गाथा १) जैन आगम के द्वादश अंगों में बारहवाँ दृष्टिवाद है । इसके अन्तर्गत १४ पूर्व हैं । उनमें पाँचवें पूर्व का नाम 'ज्ञान७. कसा० पा०, भाग १, पृ० १८३ । संकाय पत्रिका-२ www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy