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________________ आश्चर्य चकित रह गये । प्रवृत हुए । लगभग दो ( ३ ) विद्वानों ने हमारी इस ज्ञान सम्पदा को देखा तो वे अनेक विद्वान् इसके अध्ययन और अनुसंधान में शताब्दियों से यह कार्य निरन्तर चलता आ रहा है। बहुत सी सामग्री प्रकाश में आयी है। उसका भी उपयोग हमारे यहाँ होना चाहिए। देश-विदेश के अनेक प्राच्यविदों से मेरा व्यक्तिगत सम्पर्क रहा है। भारतीय संस्कृति और विद्याओं के प्रति उनकी निष्ठा और व्यापक दृष्टिकोण को मैंने देखा है । हमारे लिए यह स्पृहणीय है । भारतीय विद्वानों का दायित्व उनसे अधिक है । मुझे प्रसन्नता है। कि इस विश्वविद्यालय के विद्वानों में इस प्रकार की जागरूकता है | यह विशेष हर्ष का विषय है कि संकाय पत्रिका के इस अंक की अधिकांश सामग्री विश्वविद्यालय के श्रमणविद्या संकाय के विद्वानों ने स्वयं परिश्रम पूर्वक तैयार की है । इसका सम्पादन भी पूर्ण निष्ठा के साथ सावधानी पूर्वक किया गया है । अनुसन्धान के क्षेत्र में विद्वानों का यह सामूहिक प्रयत्न प्रशंसनीय माना जायेगा । विश्वविद्यालय के लिए यह एक गौरव की बात है । अन्य विश्वविद्यालयों के विद्वानों का सहयोग भी इस अंक में लिया गया है । यह पत्रिका के क्षेत्र को और अधिक व्यापकता प्रदान करेगा । मैं विद्वानों के इस अध्यवसाय की सराहना करता हूँ। मुझे आशा है कि विद्वज्जगत् में विश्वविद्यालय के इस नये उपहार का स्वागत होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only श्री गौरीनाथ शास्त्री कुलपति www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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