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________________ अज्ञातकर्तृक श्रीन्यायसिद्धान्तप्रवेशकन्थिका संपा. मुनि शीलचन्द्रविजय नव्य न्यायनो आ अपूर्ण छतां अपूर्व ग्रन्थ छे. एना मंगलाचरणना बे काव्यो उपरथी समजाय छे के एना कर्ता कोई जैन विद्वान् हशे. आ ग्रंथनु नाम तेना प्रारभना बीजा श्लोक प्रमाणे 'प्रावेशिका कन्धि का' छे. परंतु खेडावाळो प्रतिना प्रत्येक पत्र परना हांसियामा 'सिद्धान्तकन्थिका' एवं नाम लखेलुं छे. पण आ थनो हेतु न्यायशास्त्रना गहन विषयमा विद्यार्थी ने सरळतया प्रवेश कराववो ए होय एम लागे छे अने तेथी ज तेनु 'न्यायसिद्धान्तप्रवेशकन्थिका' एवं सार्थक नाम अहों गोठव्युं छे. आ ग्रंथ जैन न्यायनो नथी ए स्पष्ट छे. ग्रंथनी भाषा खूब ज सरळ छतां लालित्यपूर्ण संस्कृत छे. शैली गुरुशिष्यनसंवादात्मक छे. आनकाल तो आवा ग्रंथोनो विश्लेषण अने विवेचननी दृष्टिए अभ्यास थतो होई, ग्रन्थना के निरूपणीय विषयनां हाने पामवा करतांय वधु लक्ष्य तेनी आजुबाजुनी बाह्य परिस्थिति उपर अपाय छे. पण आपणी प्राचीन गुरुपरंपरा, शिष्योने कठिनमां कठिन विषयोनु रहस्य पण केवी सरळ रोते अने स्पष्टताथी समजावो शकतो हतो, तेनो तादृश चितार आ ग्रंथमा जोवा मळे छे. वृद्ध गुरुजनो पासे ग्रंथाभ्यास न कर्यो होय तेवी व्यक्तिओ, आ ग्रंथ वांचीने गुरुजन पासे भगवानी पद्धतिनो अणसार अवश्य मेळवी शकशे. आ अपूर्ण ग्रंथमां बे विषयो परना विचारो उपलब्ध छे. पहेलो कार्यकारणभावविचार पूर्ण छे. बीजो प्रतिबध्यप्रतिबंधकभावविचार अपूर्ण छे, आ ग्रंथ संपूर्ण मळे तो ते न्यायशास्त्रनो विशिष्ट अध्ययनग्रंथ बनी रहे. आ ग्रंथनी बे प्रतिओ मने मळी छे. एक प्रते मारा पूज्य गुरु महाराज आ. श्रोविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी म. ना संग्रहनी छे. जेने आदर्श तरीके राखी छे. अने बीजी प्रति श्री ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरनी छे. बन्नेनो परिचय आ प्रमाणे छे : प्रति सु: पत्र १२. साइझ २६.६४१२.२ से.मी. लेखन काळ : विक्रम १९मो शतक. प्रतिनी स्थिति अति जीर्ण छे. पानां खवाई गयां छे. भाषा शुद्ध छे. दरेक पत्रमा १४ पंक्तिओ छे. प्रत्येक पंक्तिमां आशरे ५६ अक्षरा छे. तेनी संज्ञा सू. राखी छे. प्रति खे : पत्र १३, साइझ २५.५+११.५ से.मी. लेखनकाळ विक्रम १९मा शतक. स्थिति मध्यम, पण घणो ज अशुद्ध. प्रत्येक पत्रमा १५ पंक्तिओ छे. प्रत्येक पक्तिए अंदाजे ६० अक्षरा छे. आ प्रति लखतां लखतां दसेक पंक्ति जेटलुलखाण रही गयु हशे ते लेखके पाछळथो अलग पृष्ठ उपर ते लख्यु छे. ते पृष्ठ पर ते दस पंक्तिओ सिवाय बन्ने बाजु कशुलखाण नथो. आ प्रति मूळ खेडाना भंडारनी छे. ते भण्डार ला. द. विद्यामन्दिर अंतगत होवा छतां मूळ खेडानी होई तेने 'खे०' एवी संज्ञा आपी छे. तेना नंबर १९२ अने सीरीयल नंबर ११३९७ छे. - बन्ने प्रतिओ कोई एक न आदर्श उपरथी लखाई होय तेवु अनुमान बन्ने प्रतिनु लखाण एक न स्थाने अटकतु होवाने कारणे, थाय छे. सू० प्रतिने आदर्श राखीने तेनी नकल अहीं रजू करी छे. ते साथे खे० प्रतिमाथी पाठांतरो मेळवीने टिप्पणी रूपे नोंध्या छे. सू० प्रतिना पाठो ज्यां ज्यां लवाई गया है, त्यां त्यां खे० प्रतिनी सहाय लीधी छे. एवां स्थानोए अधोरेखा करवामां आवी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014027
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSeminar & Articles
File Size18 MB
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