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________________ संपा० मुनि शीलचन्द्रविजय संपादित 'जबूस्वामी राम'नो प्रस्तावनामा तेम ज 'यशोदोहन' आदिमां पण, अपाएलां ए पटनां विवरणमां, से ज राते वर्णन छे. ज्यारे हकीकत एथी जुदी छे. पं. नयविजयजो गणिना गुरु उपाध्याय कल्याणविजयजी नहि, किन्तु 'पं. लाभविजयजी गणि' छे. अने पोताना गुरुनु नाम लखवानु पं. नयविजयजी टाळे, एम पं. नयविजयजी माटे कल्पवू, ए अनुचित जा नहि परंतु एमने भारभार अन्याय करवा जेवु पण छे. कहेवाना आशय ए छे के वस्त्र-चित्रपटनी सरखामणीमां 'सुजस-वेली भास'नु महत्त्व ओछु आंकवु, ए उचित नथी. बल्के, उपरना मुद्दाओ जोतां तो, 'वस्त्र-चित्रपट' ज फेरविचार मांगी ले छे. बाको तो, जे बाबतना चोकप पुरावा ज अनुपलब्ध हाय ते बाबत विशे वधुमां वधु तो आपणे तो लडावाए, कदाच कांइक परणाम नोपजशे एवो आशाए. परंतु, जे वात तक अने अनुमानना विषय बनी, ते वात, ज्यां सुधी तेना विशे कोई नकर पुरावा उपलब्ध न थाय त्यां सुधी, मात्र अनुमानना ज विषय रहेबानो, ए आपणे समजी लेवु जोईए अने एटले ज, आ वात छोडीने, मूळ विषय ऊपर आवीए. महोपाध्याय श्रीयशाविजयजीए जैन जैनेतर तमाम वाङ्मयमा बहुमूल्य प्रदान कयु छे एमणे रचेला जैन न्याय ग्रंथो जो जैनदर्शनना इतिहासमां सामाचिह्नरूप अने जैनोना दार्शनिक विकासनां उन्नततम पगथियांरूप गणाय, तो तेनो साथे ज, ए ग्रंथो द्वारा, तेमणे 'भारतीय न्यायदर्शन'नी पण असाधारण सेवा बजावी छे, एम स्वीकार जोईए. न्याय-दर्शननो एक नवो प्रवाह, जेना प्रणेता 'चिन्तामणि'कार गंगेशोपाध्याय हता अने जे 'नव्य न्याय'नां नामे जगप्रसिद्ध छे, ते प्रवाहने ऊंडा लई जवामां, विशद रोते विस्तारवामां अने तेमां अवनवा वहेणाने खोली अपवामां, उपाध्यायजीना ग्रंथोनो फाळा अनन्य छे नव्यन्याय जेवो ज आकरो विषय गणाय छे 'जैन कर्म साहित्य'. आ साहित्यमां मूर्धन्य ग्रंथ छे 'कर्म प्रकृति'. मूळ प्राकृत गाथाओमां रचायेला आ ग्रंथ ऊपर महान जैनाचार्य श्रीमलयगिरिजी महाराज विरचित संस्कृत टीका तो उपलब्ध छे ज. परंतु, ते टीका करताय वधु सरल अने मूळ ग्रंथना रहस्यने खोली नाखवामां चावी समान टोकाग्रंथ, उपाध्यायजीए रच्यो छे. ए ग्रंथ जो के मुद्रित छे, परन्तु ए ग्रन्थनी एक एवो अमूल्य अने दुर्लभ हस्तप्रति हाथ आवी छे के जेनो परिचय आपवानी लालचे ज आटलु बधु विवरण कहेवानु बन्यु छे. आपणु सौभाग्य छे के उपाध्यायजीए ग्रन्थो रच्या तो शताधिक संख्यामां; पण ए साथे तेमणे स्वहस्ते लखेला ग्रंथो पण चालीस करतां वधु संख्यामां आपणी पासे उपलब्ध छे. अने ए करतांय वधु आनंददायक बीना तो त्यारे बनेली ज्यारे पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजे, उपाध्याय जी महाराज समेत तेमना समग्र समुदाये साथे मळीने लखेली 'द्वादशार-नयचक्र'नी हस्तप्रति शोधी काढी. ग्रंथकर्ताए एक ग्रंथ बनान्यो होय अने तेनी शुद्ध आवृत्ति ते पोते लखे, ए तो सामान्य शिरस्तो छे. परन्तु, एक अन्य ग्रंथकारनी बनावेली कृतिने लखवामां, तेमना साथीदारो पण सहायक लेखक बने, ए एक विस्मयजनक छतां गौरव लेवा जेवी बीना छे. 'द्वादशार नयचक्र' तो आपणा पूर्वकालीन महापुरुषे रचेलो आकरग्रंथ हतो अने तेनी नकल पंदर दिवस जेटला टूका गाळामां करवानी होई, ते लखवामां उपाध्याय जीने तेमना साथी साधुओ सहायक बने, ए हवे समजी शकाय तेवी वात छे. Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014027
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSeminar & Articles
File Size18 MB
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