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________________ २६ जैन यक्षी अजिता या रोहिणी का प्रतिमानिरूप | (११) देवी लोहालना रोहिण्याख्या चतुर्भुजा । वरदाभयहस्तासौ शंखचक्रोज्त्रलायुधा ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. १८ । (१२) प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १५७; प्रतिष्ठातिलकम् ७ २, पृ० ३४१; अपराजितपृच्छा २२१. १६ । (१३) महाविद्या रोहिणी की एक भुजा में शंख भी प्रदर्शित है । (१४) द्रष्टव्य, रामचन्द्रन, टो० एन०, तिरुपरुत्तिकुणरम ऐण्ड इट्स टेम्पलूस, बुलेटिन मद्रास गवर्नमेन्ट म्यूजियम, खं०१, भाग ३, मद्रास, १९३४, पृ० १९८ । (१५) श्वेताम्बर स्थलों पर महाविद्याओं को विशेष लोकप्रियता, यक्षियों की स्वतन्त्र मूर्तियों की अल्पता एवं अजितनाथ की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का न उत्कीर्ण किया जाना इस पहचान में बाधक हैं । (१६) देवगढ़ की मूर्तियों पर श्वेतांबर परम्परा की प्रथम महाविद्या रोहिणी का प्रभाव है । गोवाहना रोहिणी महाविद्या की भुजाओं में बाण, अक्षमाला, धनुष एवं शंख प्रदर्शित (१७) द्रष्टव्य, मित्रा, देवला, शासनदेवीज इन दि खण्डगिरि केन्स, जर्नल एशियाटिक सोसाइटी (कलकत्ता), खं० १, अं० २, १९५९, पृ० १२८ । (१८) वही पृ० १३० । (१९) वही पृ० १३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014027
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSeminar & Articles
File Size18 MB
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