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________________ गुजरात में जैनधर्म और जैन कला ___डॉ. हरिहर सिंह गुजरात जैनधर्म की मातृभूमि नहीं है। वहाँ किसी तीर्थंकर का जन्म नहीं हआ है। तथापि इस क्षेत्र में जैनधर्म का प्रभाव अति प्राचीन काल से रहा है। जैन परम्परा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने सौराष्ट्र स्थित शत्रुजयगिरि पर धर्मोपदेश किया था ।' सौराष्ट्र के ही रैवतक गिरि (गिरनार) पर बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के तीन प्रमुख कल्याणक अर्थात् महाभिनिष्क्रमण, केवलज्ञान और निर्वाण सम्पन्न हुए थे। इन स्थानों की धार्मिक पवित्रता के कारण यहाँ प्राचीन काल से कलापूर्ण मन्दिरों का निर्माण हुआ है, जिनके अवशेष आज भी विद्यमान हैं। ऐतिहासिक काल में गुजरात सर्वप्रथम सम्भवतः उस समय जैनधर्म के सम्पर्क में आया जब जैनाचार्य भद्रबाहु मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (ई. पू. चौथी सदी का उत्तरार्ध) के साथ दक्षिण की ओर प्रस्थान किये और अपने प्रवास काल में गिरनार की यात्रा की। मौर्य सम्राट सम्प्रति जैन धर्मावलम्बी था। जैन परम्परा में उसका उसी प्रकार गुणगान किया गया है जिस प्रकार बौद्ध परम्परा में अशोक का। जिस प्रकार अशोक ने बौद्धधर्म के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी उसी प्रकार सम्प्रति ने जैनधर्म के उत्थान में योगदान किया था। उसने उज्जैन से शत्रुजय तक की तीर्थयात्रा में एक जैनसंघ का नेतृत्व भी किया था जिसमें आचार्य सुहस्ति सहित ५००० श्रमण सम्मिलित हुए थे।" प्रथम सदी ई. पूर्व में गुजरात में जैनधर्म का पर्याप्त प्रभाव था। कालकाचार्यकथा में उल्लेख है कि इस काल में आचार्य कालक भड़ौच गये थे और वहाँ लोगों को जैनधर्म का उपदेश किये थे। इस समय की एक अन्य घटना यह थी कि भड़ौच के प्रसिद्ध न्यायविद् आचार्य खपुट ने बौद्धों को एक धार्मिक वाद-विवाद में शिकस्त दी थी। गुजरात में जैनधर्म की विद्यमानता का निश्चित प्रमाण क्षत्रप काल से उपलब्ध होता है । क्षत्रप शासक जयदामन के पौत्र के जूनागढ़ शिलालेख (दूसरी सदी ई.) में उन लोगों का उल्लेख है जिन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और जरामरण से मुक्ति पायी । 'केवलज्ञान' और 'जरामरण' जैन पारिभाषिक शब्द हैं और इनसे इस क्षेत्र परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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