SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन ___ जैन परम्परा में मूर्ति पूजन के इतिहास का अनुशीलन करते समय सैन्धव सभ्यता के अधिक स्पष्ट, विशेषतः लिपि सम्बन्धी, संदर्भ महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं। ___ 'महावीर के जीवनकाल में उनकी मूर्ति निर्मित हो गयी थी जो 'जीवंत स्वामी' के नाम से अभिहित हुई, इस निष्कर्ष को अन्तिम रूप से स्वीकार करने के लिए अभी और अधिक पुष्ट प्रमाणों की अपेक्षा है। जिन प्रतिमायें भारतीय प्रतिमा विज्ञान में विशेष स्थान रखती हैं। जिन प्रतिमाओं के साथ लांछन, अष्ट-प्रातिहार्य, यक्ष-यक्षी युगल एवं अन्य सहायक आकृतियों का अंकन उत्तरोत्तर विकसित हुआ है । सर्वतोभद्रिका जिन प्रतिमाओं के निर्माण में समवसरण की संकल्पना के साथ ही भारतीय मूर्तिकला के अन्य समकालीन एवम् पूर्ववर्ती चतुर्मुखी उपादानों की परम्परा का तुलनात्मक अध्ययन भी आवश्यक है। यक्ष-यक्षी, महाविद्याओं एवम् अन्य जैन देवों की मूर्तियों का अध्ययन समग्र भारतीय परम्पराओं के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के संदर्भ में किया जाना चाहिए। महाविद्याओं एवम् जिनों के जीवन दृश्यों का श्वेताम्बर स्थलों पर, तथा यक्षियों एवम् भरत और बाहुबलि आदि की दिगम्बर स्थलों पर विशेष लोकप्रियता भी ध्यातव्य है। कुछ जैन स्थलों पर काम-क्रिया से सम्बन्धित मूर्तियों का अंकन भी विशेष उत्सुकता का विषय है। खजुराहो के आदिनाथ मंदिर की १६ रथिकाओं की देवी मूर्तियाँ भी विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। पाद टिप्पणी १. एपिग्राफिया इण्डिका, खं० १, कलकत्ता, १८९२, लेख सं० १, २, ७, २१, २९; खं० २, कलकत्ता, १८९४, लेख सं० ५, १६, १८, ३९ । २. भण्डारकर, डी० आर० आकिंअलॉजिकल सर्वे भाव इण्डिया, ऐनुअल रिपोर्ट, १९०८ ०९, कलकत्ता, १९१२, पृ० १०८; नाहर, पी० सी० जैन इन्स्क्रप्शन्स, भाग १, कलकत्ता, १९१८, पृ० १९२-९४; एपिग्राफिया इण्डिका, खं० ११, पृ०५२-५४; विजयमूर्ति (सं०) जन शिलालेख संग्रह, भाग ३, बम्बई, १९५७, पृ० ७९, १०८; शास्त्री, परमानन्द जैन, 'मध्य भारत का जैन पुरातत्त्व', अनेकान्त, वर्ष १९, अं० १-२, पृ० ५७ । ३. ढाकी, एम० ए०, 'सम अर्लो जैन टेम्पल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' महावीर जैन विद्यालय गोल्डेन जुबिली वाल्यूम, बम्बई, १९६८, पृ० २९८ ।। परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy