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________________ जैन कला का अवदान कोई प्रयास ही नहीं किया गया। यक्षों की केवल द्विभुजी और चतुर्भुजी मूर्तियाँ बनीं, पर यक्षियों की दो से बीस भुजाओं तक की मूर्तियाँ मिली हैं।। यक्ष और यक्षियों की सर्वाधिक जिन-संयुक्त और स्वतंत्र मूर्तियाँ उत्तर-प्रदेश एवं मध्य-प्रदेश के दिगंबर स्थलों पर उत्कीर्ण हुयीं। अतः यक्ष एवं यक्षियों के मूर्तिविज्ञान परक विकास के अध्ययन की दृष्टि से इस क्षेत्र का विशेष महत्त्व है। इस क्षेत्र में दशवों से बारहवीं शती ई. के मध्य ऋषभनाथ, नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ के साथ पारंपरिक, और सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभ, शांतिनाथ एवं महावीर के साथ स्वतंत्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी युगल निरूपित हुए। अन्य जिनों के साथ यक्ष-यक्षी द्विभुज और सामान्य लक्षणों वाले हैं। इस क्षेत्र में चक्रेश्वरी एवं अबिका की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं। साथ ही रोहिणी, मनोवेगा, गौरी, गांधारी, पद्मावती एवं सिद्धायिका की भी कुछ मूर्तियाँ मिली हैं। चक्रेश्वरी एवं पद्मावती की मूर्तियों में सर्वाधिक विकास दृष्टिगत होता है। यक्षों में केवल सर्वानुभूति, गरुड़ (देवगढ़) एवं धरणेन्द्र की ही कुछ स्वतंत्र मूर्तियाँ मिली हैं। इस क्षेत्र में २४ यक्षियों के सामूहिक अंकन के भी दो उदाहरण हैं, जो देवगढ़ (मंदिर १२ ई. ८६२) से मिले हैं। देवगढ़ के उदाहरण में अंबिका के अतिरिक्त अन्य किसी यक्षी के साथ पारंपरिक विशेषताएँ नहीं प्रदर्शित हैं। देवगढ़ समूह की अधिकांश यक्षियां सामान्य लक्षणों वाली और समरूप, तथा कुछ अन्य जैन महाविद्याओं एवं सरस्वती आदि के स्वरूपों से प्रभावित हैं। ____ गुजरात और राजस्थान में अंबिका की सर्वाधिक मूर्तियाँ बनीं । चक्रेश्वरी, एवं सिद्धायिका की भी मूर्तियाँ मिली हैं। यक्षों में केवल गोमुख, वरुण (१, ओसिया महावीर मंदिर) सर्वानुभूति एवं पार्श्व की ही स्वतंत्र मूर्तियाँ हैं । सर्वानुभूति की मूर्तियाँ सर्वाधिक हैं। इस क्षेत्र में छठी से बारहवीं शती ई. तक सभी जिनों के साथ एक ही यक्ष-यक्षी युगल, सर्वानुभूति एवं अंबिका, निरूपित हैं । केवल कुछ उदाहरणों में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर के साथ पारंपरिक या स्वतंत्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं। ये उदाहरण ओसिया, आबू एवं कुंभारिया जैसे स्थलों से मिले हैं। बिहार, उड़ीसा एवं बंगाल में यक्ष-यक्षियों की मूर्तियाँ नगण्य हैं। केवल चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती की कुछ स्वतंत्र मूर्तियाँ मिली हैं । उड़ीसा की नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं (११वीं-१२वीं शती ई.) में क्रमशः सात और चौबीस यक्षियों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। बारभुजी गुफा की २४ यक्षी मूर्तियां संबंधित जिनों की मूर्तियों के नीचे उत्कीर्ण हैं। द्विभुज से विंशतिभुज यक्षियाँ ललितमुद्रा या ध्यानमद्रा में आसीन हैं । २४ यक्षियों में केवल चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती के निरूपण परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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