SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट २ जैनविद्या एवं प्राकृत : राष्ट्रीय संगोष्ठी १९८१ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आर्थिक सहयोग से सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्राकृत एवं जैनागम विभाग द्वारा मार्च १९८४ में दिनांक १४ से १६ तक राष्ट्रीय स्तर पर त्रिदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षासंस्थानों के ६४ विद्वान् सम्मिलित हए। २१ विद्वान् श्रोता के रूप में उपस्थित रहे। गोष्ठी में जनविद्या और प्राकृत के अवदान को अभिव्यक्त करने वाले ५६ निबन्ध प्रस्तुत हुए। निबन्धों को पांच वर्गों में विभाजित किया गया था - १. भारतीय संस्कृति एवं श्रमणपरम्परा। २. जैनकला, इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व। ३. प्राकृत, भारतीय भाषाएँ और साहित्य । ४. धार्मिक एवं दार्शनिक चिन्तन। ५. जैनविद्या : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन । गोष्ठी सात सत्रों में सम्पन्न हुई। छह सत्रों में निबन्ध पाठ तथा एक सत्र में 'भारतीय विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं जैनविद्या का अध्ययन' विषय पर परिचर्चा ( सिम्पोजियम ) का आयोजन किया गया। शुभारम्भ-- विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति आचार्य बदरीनाथ शुक्ल ने १४ मार्च १९८१ को प्रातः १० बजे संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। छान्स, पाली, तिब्बती, प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश मंगलाचरण के उपरान्त गोष्ठी के संयोजक-निदेशक, प्राकृत एवं जैनागम विभागाध्यक्ष डॉ. गोकुलचन्द्र जैन ने अपने प्रारम्भिक वक्तव्य में गोष्ठी की पृष्ठभूमि को बताते हुए समागत विद्वानों का स्वागत किया। कुलपति महोदय ने अपने शुभारम्भ भाषण में भारतीय संस्कृति की मूल प्रेरणा भाव, भाषा और क्रिया में सामंजस्य को बताया और कहा कि हमें सामयिक समस्याओं के परिवेश का ध्यान रखते हुए मानव मात्र के कल्याण का मार्ग खोजना चाहिए । परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy