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________________ आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास और प्राकृत तथा अपभ्रंश ३०७ २७. खड़ी खड़ा - खड़ा खड्डा आदि शब्द पंजाबी, हरियानी और खड़ी बोली में प्रयुक्त है, जबकि हिंदी बोली समूह और राजस्थानी में क्रमशः ठाढ़ और ऊभा शब्द प्रचलित हैं । ठाढ़ के मूल में स्थान शब्द है । प्राकृत वैयाकरण स्थान से ठाण का विकास मानते हैं । प्राकृत के एक नियम के अनुसार 'ठ' 'ख' में बदलता है । खाण से खड़ा बना । 'खड़ी बोली' का अर्थ है, स्थापित या व्यवहार में आनेवाली बोली | दूसरी बोलियाँ प्रादेशिक आधार पर अपना विकास करती हैं, जब कि खड़ी बोली ऐतिहासिक आधार पर । २८. खड़ाऊँ काष्ठपादुका > कट्ठ आ उ आ > कठाउआ > कढाउआ >ख डा उ आ>खड़ाऊँ । २९. रस्सी/लेजुरी संस्कृत में रश्मि और रज्जु शब्द हैं- "किरणों का रज्जु समेट लिया" । [ कामायनी ] रश्मि > रस्सिर > रस्सी । रज्जु -> लज्जु > लेज्ज > लेज । स्वार्थिक प्रत्यय 'ड' के कारण रज्जुड़ी रूप होगा । रज्जुड़ी > लजुड़ी 7 लेजुरी । लजुड़ी से जेलुड़ी जेउड़ी > जेवड़ी का विकास होता है । 'राम नाम की जेवड़ी जित खींचे तित जाऊँ ।' -कबीर 'लेजुरी भई नाह बिनु तोहीं ।' - जायसी ३०. बड़ा बृहत् > बहड्डु> अड्डु > बाहु > बड़ा | ये व्युत्पत्तियां बानगी के तौर पर दी गई हैं, जो यह बताने के लिए हैं कि लोकव्यवहार भाषा की वह टकसाल है, जो शब्दों को घिसती है, ढालती है, और उनका प्रमाणीकरण करती है । क्योंकि इसके बिना लोक व्यवहार नहीं चल सकता । भारतीय आर्यभाषा मूलतः एक भाषा का प्रवाह है, जो एक से अनेक प्रवाहों में विकसित होता हैं, प्राकृत अपभ्रंश उसके मुहाने हैं, जिनके अध्ययन के बिना न तो भाषा की बहुमुखी विकास प्रक्रिया का वैज्ञानिक अध्ययन संभव है, और न उनके योगदान का वास्तविक मूल्यांकन । इसके लिए पहली मूलभूत आवश्यकता है - प्राकृत और अपभ्रंश के शब्दों और रूपों के व्युत्पत्तिमूलक शब्दकोशों की रचना, जो संदर्भों और उदाहरणों से भरपूर हो। उसके अनंतर प्रत्येक प्रादेशिक अथवा बोली के उद्गम और विकास की प्रवृत्तियों का अध्ययन और उनकी, पूर्ववर्ती शब्दों और रूपों से पहचान, इससे आर्यभाषा की क्षेत्रीय और ऐतिहासिक प्रवृत्तियों की प्रामाणिक पहचान हो सकेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद-४ www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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