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________________ २९४ बुन्देली अर्थ जनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन आर्य-भाषाओं से पर्याप्त प्रभावित हैं । किन्तु इस दृष्टि से अभी उनका अध्ययन किया जाना शेष है। मध्यदेशीय भाषायें आधुनिक भारतीय आर्य-भाषाकों के विकासक्रम में मध्यदेश की लोक-भाषाओं का महत्त्वपूर्ण योग रहा है। शौरसेनी और अर्धमागधी प्राकृतों का मध्यदेश में अधिक प्रसार था । अतः यहाँ विकसित होने वाली बुन्देली, कन्नौजी, ब्रजभाषा, अवधी, बघेली एवं छतीसगढ़ी बोलियों पर इनका प्रभाव अधिक है। ये बोलियाँ पश्चिमी और पूर्वी हिन्दी की उपभाषायें हैं। इनमें रचित साहित्य प्राकृत और अपभ्रंश की प्रवृतियों से अछूता नहीं है। बोल-चाल की भाषाओं में भी मध्ययुगीन आर्य-भाषाओं का प्रभाव नजर आता है । इस दशा में समग्ररूप से अध्ययन किया जाना अभी अपेक्षित है। बुन्देली भाषा के शब्द द्रष्टव्य हैं प्राकृत गोणी गौन, गोनी २ मन वजन की बोरी चंगेडा चंगेरी डलिया चिल्लरी चिलरा चुल्लि चूला-चूलैया चूल्हा चोप्पड चुपड़ा लगाया हुआ छेलि छिरियाँ बकरी जोय जोहना देखना जुहार नमस्ते करना डगलक डिगला ढेला ढोर ढोर पशु तित्त तीतो गीला धुसिय धुस्सा मोटा चादर नाहर नाहर सिंह पट्टउल पटेल प्रधान परइ परों परसों पाडी पड़िया भैंस पूरा घास का पुलिन्दा बड्डा बड्डा बड़ा बाग्गुर बगुर समूह मुलहा मुरहा मूल में उत्पन्न पुत्र जोहार पूल परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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