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________________ ११४ जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन ८. धरमदास जौहरी ये आगरा-निवासी जैन व्यापारी थे। इनके पिता का नाम अमरसी था। संभवतः ये गुजरात के मूल निवासी जान पड़ते हैं, कदाचित् व्यापार को ध्यान में रखते हुए आगरा आ बसे थे ।१ धरमदास बुरे व्यसनों से ग्रस्त था, इसीलिए इसके पिता अमरसी ने इसको बनारसीदास का व्यापारिक साझीदार बना दिया था। इस संदर्भ में अमरसी ने धरमदास जौहरी को ५०० मुद्रायें दी थीं। इस प्रकार बनारसीदास और धरमदास जौहरी ने मोती, माणिक, मणि, चूना आदि वस्तुओं को खरीदने एवं अच्छे दामों में बेचने का व्यापार किया जिसमें इनको लाभ भी मिला था ।३२ ९. संघपति चन्दू ये आगरा नगर के एक धनी जैन थे। संघपति, जैन समाज की एक विशिष्ट उपाधि होती थी। धनी एवं व्यापारी होने के साथ ही साथ आप एक धार्मिक व्यक्ति भी थे। सन् १६१० ई. के आगरा-संघ के विज्ञप्तिपत्र, जो श्रीविजयसेन सूरि को भेजा गया था, में सूरि जी से संघपति चन्दू द्वारा निर्मित नवीन जिन चैत्य की प्रतिष्ठा हेतु पधारने हेतु नम्र प्रार्थना की गई थी।33 १०. तिहुना साहु ये सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के एक धनी जैन व्यापारी थे। इनकी जाति अग्रवाल थी। इन्होंने आगरा में एक विशाल जिनमंदिर बनवाया था ।४ आगरा के तिहुना साहू के इसी मंदिर में रूपचन्द्र नाम के गुणी विद्वान् १६३५ ई. में आकर ठहरे थे। इनके पांडित्य की प्रशंसा सुनकर बनारसीदास को मण्डली के सभी अध्यात्मप्रेमी उनसे जाकर मिले और विनयपूर्वक उनसे “गोम्मटसार" का प्रवचन कराया था। ३१. बनारसीदास', बनारसीविलास अर्द्धकथानक समीक्षा सहित, पृ. ६३ ।। ३२. वही, पृ. ६३ । ३३. भँवरलाल नाहटा, उदयपुर का सचित्र विज्ञप्तिपत्र, नागरी प्रचारिणी पत्रिका १९५२, अंक २-३ । ३४. बलभद्र जैन, संपा., भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ प्रथम भाग बम्बई, भारतवर्षीय दि० जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी प्रकाशन, १९७५, पृ. ६० । ३५. प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें, पृ. २९२ । परिसंवाद ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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