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________________ सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरप्रदेश के कतिपय विशिष्ट जैन व्यापारी इस प्रकार इस विज्ञप्ति पत्र से जैनों की राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। साथ ही इससे जहाँगीरकालीन आगरा के कुछ प्रमुख जैन सेठसाहूकारों के नाम भी प्रकाश में आते हैं। इससे सत्रहवीं शताब्दी के जैन व्यापारियों के बारे में जानकारी भी प्राप्त होती है । १७वीं शताब्दी के अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेजों में इन व्यापारियों के संबंध में महत्त्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं। ___ उपर्युक्त स्रोतों के आधार पर सत्रहवीं शताब्दी के आगरा के कुछ प्रमुख जैन व्यापारियों का विवरण इस प्रकार है :१. हीरानंद मुकीम सम्राट अकबर के शासन के अंतिम वर्षों तथा जहाँगीर के शासन काल के प्रारंभ में आगरा के सेठ हीरानंद शाह अत्यन्त धर्मात्मा एवं धनवान् व्यक्ति थे। इनकी जाति ओसवाल थी। ये हीरे-जवाहरात का व्यापार करते थे तथा अकबर के समय में शाहजादा सलीम के कृपापात्र जौहरी थे। अकबर की मृत्यु के पश्चात् भी ये जहाँगीर के कृपापात्र जौहरी बने रहे। संभवतः इनको जवाहरात की मुकीमी का पद मिला था । इनके पिता का नाम साह कान्हड़ तथा माता का नाम भामनीबहू था ।' इनके पुत्र का नाम शाह निहालचंद था। इन्होंने १६०४ ई० में सम्मेदशिखर तीर्थ के लिए संघयात्रा की थी। संघ के साथ हीरानन्द सेठ के अनेक हाथी, घोड़े, पैदल तथा तुपकदार थे। शाह हीरानन्द की ओर से पूरे संघ को प्रतिदिन भोज दिया जाता था। संघ लगभग एक वर्ष तक यात्रा करने के पश्चात् वापस आया। इस धार्मिक कार्य से शाह हीरानंद मुकीम की आर्थिक स्थिति का आभास मिलता है। सम्राट अकबर की मृत्यु (१६०५) के पश्चात् जब जहाँगीर सम्राट बना, तब भी शाह हीरानंद उनके व्यक्तिगत जौहरी और कृपापात्र बने रहे। सन् १६१० ई० में शाह हीरानंद ने सम्राट जहाँगीर को अपने घर आमंत्रित किया, अपनी हवेली की भारी सजावट की, सम्राट को बहुत मूल्यवान् उपहार दिया और उसको तथा दरबारियों को शानदार ७. बनारसीदास, बनारसी विलास अर्धकथानक समीक्षा सहित, नाथूराम प्रेमी (संपा०) (बम्बई, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय १९०५) पृ० ४९ । ८. पूरनचन्द नाहर संक० जैनलेख संग्रह द्वितीय भाग (कलकत्ता १९२७) लेखांक १४५१ । ९. अगरचन्द नाहटा 'शाह हीरानन्द तीर्थयात्रा विवरण और सम्मेतशिखर चैत्य परिपाटी' अनेकान्त (मई १९५७) पृ० ३०० । परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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