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________________ जीना सीखो। जो व्यक्ति सहअस्तित्व में विश्वास करता है। यदि हमें अपने अस्तित्व को बचाये रखना है तो है, दूसरे के विचारों का आदर करता है वह कभी भी हमें दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए। सही किसी की हिंसा नहीं कर सकता। जरूरी है कि हम सहिष्णुता है और सही सहअस्तित्व की भावना है। व्यक्ति के मन में सद्विचार और अहिंसक भावनाओं समाज के कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए को प्रतिष्ठित करें। उसे संयम से जीना सिखायें। अपनी संपदा का स्वेच्छा से विजर्सन करना अपरिग्रह भगवान महावीर ने कर चोरी को राष्ट्रदोह मानते है। समाज में संग्रह की प्रवृत्ति उथल-पुथल मचाती है। हुए इसे असत्य आचारण माना है। जो राष्ट्र के विकास यदि इसका उचित समाधान नहीं किया गया तो जनसंघर्ष के लिए आर्थिक विषमता दूर करना चाहते है उन्हें शोषण या वर्ग संघर्ष की स्थिति बनती है। अत: न तो अधिक और शोषणकारियों से बचना चाहिए। आर्थिक विषमता धन का प्रदर्शन करना चाहिए और न ही आवश्यकता के कारण सामाजिक शोषण भी होता है। यह प्रत्यक्ष- से अधिक धन का संचय करना चाहिए। तभी हम शांति अप्रत्यक्ष चोरी से उत्पन्न होता है। इससे बचने के लिए से जीवन-यापन कर सकते हैं। सुख, शांति त्याग में भगवान महावीर ने कहा कि श्रम करो, श्रम का आदर है, संचय में नहीं। करना सीखो। वेसच्चे अर्थों में श्रमण थे। उन्होंने अस्तेय/ भगवान महावीर ने नारियों का सम्मान सुरक्षित अचौर्य को परिभाषित करते हुये कहा कि करना पारिवारिक एवं सामाजिक कर्तव्य माना, क्योंकि 'अदत्तादानमस्तेयं' अर्थात् बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण नारी समाज की महत्वपूर्ण इकाई है। चंदना के उद्धार से करना चोरी है। कल, बल, छल या दूसरे तरीकों से जिस उन्होंने यह संदेश जन-जन में दिया कि स्त्री भी समाज पर अपना अधिकार नहीं है उन वस्तुओं का स्वयं ग्रहण में पुरुषों की तरह आदर एवं सम्मान की पात्र है। आज करना, दूसरों को दे देना चोरी है। इससे बचना चाहिए। तो लोग गर्भ में ही कन्याओं की भ्रूण हत्या कर रहे हैं जो व्यक्ति अस्तेय भावना को अपना लेता है वह राष्ट्र उन्हें इस पाप से बचना चाहिए। यह राष्ट्र एवं समाज के की सपदा का सबसे बड़ा सरक्षक होता है। प्रति द्रोह है जिसकी अनुमति न धर्म देता है और न - भगवान महावीर ने बताया कि संसार के सभी समाज । संयमी जीवन सुख का संवाहक होता है, इसलिए प्राणियों में एक जैसी आत्मा है। भले ही उनके शरीर भगवान महावीर ने स्वस्त्री या स्वपुरुष से ही रमण करने उनकी गतियों के अनुरूप हो सकते हैं। इस भेद के का गृहस्थों को संदेश दिया और साधुओं से कहा कि आधार पर किसी का हनन नहीं करना चाहिए। जिओ वह पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए आत्महित करें। और जीने दो का सिद्धान्त यही बताता है। इस नियम का पालन करने पर एड्स जैसी भयंकर बीमारी उन्होंने कहा कि - की उत्पत्ति को रोका जा सकता है। सव्वे पाणा पियाउआ सुहसाया दुक्खपडिकूला। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान महावीर अपियवहा पियजीविणो जिविउ कामा ।। के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और यह सभी समस्याओं सव्वेसिं जीवियं पियं का समुचित समाधान करने में समर्थ है। हम सब इन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं। अर्थात् सभी प्राणियों को आयु प्रिय है। सभी सुख चाहते हैं, दुःख से घबड़ाते हैं। वध नहीं चाहते ॥ एल-६५, न्यू इन्दिरा नगर, बुरहानपुर (म.प्र.) हैं, जीने की इच्छा करते हैं, सबको अपना जीवन प्यारा फोन नं. २५७६६२ महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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