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________________ महावीर ने कहा - "आज तक कोई भी प्राणी नारी उत्थान - दूसरों की सहायता से अपने समस्त कर्मों से मुक्त भगवान महावीर के युग में भारतीय नारी की नहीं हुआ। किये हुए कर्मों का भुगतान तो स्वयं बहुत दुर्दशा थी। नारी उत्पीड़न की तरफ जन साधारण को ही करना पड़ता है।" इस प्रकार उन्होंने प्राणीमात्र का ध्यान आकर्षित करने हेतु अपने साधना काल में में स्वाबलम्बी बन अपनी सुषुप्त चेतना को जागृत करने उन्होंने तेरह बोलों का कठोर अभिग्रह (संकल्प) लिया। का आत्मविश्वास जागृत किया। स्वावलम्बन की पहली जिसके अनुसार उन्होंने तब तक भिक्षा ग्रहण न करने शर्त है स्वाधीनता । पराधीनता दुःख का कारण है, जो का निश्चय किया, जब तक कोई तीन दिन की भूखी दासता में जकड़ती है। स्वाधीनता में ही सुख है। वही रोती हई, भूतकाल की राजकुमारी, हाथों में हथकड़ी अपनी शक्तियों के विकास का केन्द्र बिन्दु है। स्वाधीनता और पैरों में बेडिया पहिने, सिर से मुण्डित अबला उन्हें से ही अपनी अनन्त शक्तियों का द्वार खुलता है। जिससे भिक्षा नहीं देगी। कैसी उपेक्षित थी नारी उस युग में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र प्रकट होता ? सहज ही कल्पना की जा सकती है। है। महावीर कठोर, परन्तु हृदयग्राही आत्मानुशासन के ऐसे समय में नारी को अपने धर्म-संघ में दीक्षित प्रवर्तक थे। साधक यदि कठोर मार्ग पर न चले तो कर श्रमणी बनाना तथा अपने धर्म-तीर्थ में साधु और उसके फिसलने की संभावना सदैव बनी रहती है। अतः श्रावक के समकक्ष क्रमशः साध्वी तथा श्राविका को वे स्वयं कठोर चर्या में रहे तथा अपने शिष्य समुदाय स्थान देना उस युग का कितना क्रान्तिकारी कदम के लिए भी उन्होंने कठोर श्रमणाचार का निर्देशन किया। होगा। उन्होंने भक्त और भगवान के बीच की खाई को समाप्त करने का उपदेश दिया। वे भक्त को सदैव भक्त ही रखने जातिवाद का प्रतिकार - के पक्षधर नहीं थे। अवतारवाद की मान्यता उन्हें स्वीकार भगवान महावीर की स्पष्ट घोषणा थी कि मनुष्य नहीं थी। उन्होंने प्राणिमात्र के अन्दर उस परम परमात्म जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। हरिकेशबल जैसे पद को पहिचाना। इसी कारण उनके सम्पर्क में आकर नीच कुल में जन्मे क्षुद्र को अपने धर्म संघ में दीक्षित सम्यक् साधना में पुरुषार्थ करने वाले अनेक साधक कर, धर्म के नाम पर जातिवाद का उन्होंने प्रतीकार उनके समकक्ष सर्वज्ञ बन गये। किया। जातिवाद के नाम पर राष्ट्र में विघटन करने वालों अनन्त करुणामय व्यक्तित्व - एवं अपने स्वार्थों से प्रेरित अनुसूचित एवं नीच जातियों के उत्थान का दावा करने वालों को महावीर के जीवन दुनिया में मातृत्व में ही इतनी शक्ति है कि अपने प्रसंगों का अध्ययन कर अहम् छोड़ देना चाहिए। बच्चे के प्रति अपार अनुराग होने से माता के स्तनों में दूध आने लगता है। महावीर के जीवन के अलावा पाप से घृणा करो, पापी से नहीं - संसार में आज तक ऐसा दृष्टान्त उपलब्ध नहीं कि भगवान महावीर ने अर्जुनमाली जैसे ११४१ चण्डकौशिक जैसा भयंकर दृष्टि विषधारी सर्प काटे व्यक्तियों की हत्या करने वाले को अपने संघ में दीक्षित और रक्त के स्थान पर दूध की धारा बहे। प्राणिमात्र कर साधना के क्षेत्र में इतना गतिमान किया कि छह के प्रति कितनी दया, करुणा, अनुकम्पा और मास के अन्दर ही उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर कल्याण की भावना होगी - ऐसे महापुरुष में, लिया। भगवान महावीर ने इस घटना के माध्यम से जन जिसकी सहज कल्पना भी नहीं की जा सकती। साधारण को प्रतिबोधित किया कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। क्योंकि पापी कभी भी पाप छोड़ धर्मी महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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