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________________ महावीर का वीतराग दर्शन 838-88988888883 0 चंचलमल चोरडिया महावीर का दर्शन पूर्णत: वैज्ञानिक - वे साक्षात् ज्ञाता, द्रष्टा, वीतरागी होते हैं। भगवान इस संसार में समय-समय पर अनेक महापुरुष महावीर से पूर्व भी इस अवसर्पिणी काल में तेईस हो चुके हैं, जिन्होंने पीडित मानव को सन्मार्ग पर तीर्थंकर हो चुके हैं, जिन्होंने धर्म के शाश्वत स्वरूप लगाने का प्रयास किया। प्रायः सभी धर्म-प्रवर्तक का बोध कराया । महावीर ने किसी नये धर्म का प्रतिपादन अपनी-अपनी विशिष्टताओं से अलंकत रहे। उन्होंने नहीं किया, परन्तु उसी सनातन सत्य का साक्षात्कार देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपनी-अपनी कर प्राणिमात्र के कल्याण हेतु उपदेश दिया। सभी प्रज्ञा के अनुसार तत्कालीन समस्याओं के समाधान में सर्वज्ञों के उपदेश सिद्धान्त समान होते हैं, क्योंकि सत्य सहयोग दिया। मानव को उसके परम लक्ष्य एवं कर्तव्यों सनातन होता है। आवश्यकता है उसके सही स्वरूप का बोध कराया। नर से नारायण और आत्मा से को समझने एवं अपनाने की। धर्म आचरण की वस्तु परमात्मा बनने की कला सिखलाई। उनमें आस्था है, थोपने की नहीं। इसी कारण जैनियो के महामत्र रखने वाले विभिन्न धर्मावलम्बी अनुयायी आज भी नमस्कार, मंगलपाठ एवं अनुष्ठानों की साधना में गुणों उसका आचरण करने का प्रयास करते हैं। प्राय: सभी को ही महत्व दिया गया। किसी महापुरुष की नाम से व्यक्ति अपने-अपने धर्म अथवा आचरण को सर्वश्रेष्ठ पूजा अथवा गुणगान नहीं किया गया है। अतः यह मानते हैं। परन्तु धर्म क्या है ? उसका आचरण क्यों मानना गलत होगा कि जैन धर्म के नाम से प्रज्वलित और कैसे किया जाना चाहिए ? धर्म तो सदैव धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर थे। कल्याणकारी होता है। अपरिवर्तनीय होता है। महावीर मात्र नाम नहींउसमें वैमनस्य, विरोध और विभेद को कोई स्थान महावीर मात्र नाम नहीं है, उसका सम्बन्ध कर्म नहीं। धर्म अलग है और साम्प्रदायिकता अलग से है. कथन मात्र से नहीं। जो वे करना चाहते थे. है। धर्म तो प्राणी मात्र को जन्म, जरा एवं मृत्यु रूपी उसका पहले स्वयं अनुभव किया। शारीरिक बल से चक्रव्यूह से मुक्त करता है। धर्म की प्रामाणिकता उसके मानसिक बल ज्यादा शक्तिशाली होता है और आत्मबल मानने वाले अनुयायियों की संख्या के आधार पर नहीं, के सामने सारे बल तुच्छ हैं। युद्ध में हजारों योद्धाओं अपितु उसके सिद्धांतों की सूक्ष्मता पर निर्भर करती है। को जीतने की अपेक्षा अपने आपको जीतना, स्वयं को इस दृष्टि से जितना स्पष्ट, तर्क संगत, वैज्ञानिक एवं संयमित. नियमित, नियंत्रित. अनुशासित रखना ज्यादा सूक्ष्म विश्लेषण भगवान महावीर ने किया, अन्यत्र दष्कर है। आत्मा पर आये कर्मों का आवरण हटते ही दुर्लभ है। व्यक्ति सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, सर्व शक्तिमान एवं त्रिकाल महावीर जैन-धर्म के प्रवर्तक नहीं - ज्ञाता-द्रष्टा बन जाता है। सम्पूर्ण आत्मानुभूति की जैन परम्परा में तीर्थंकरों का स्थान सर्वोपरि है। अवस्था में विज्ञान की भौतिक जानकारी तो होती ही महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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