SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्तु अनेक धर्मात्मक यदि अहिंसा को हम अपना आदर्श मानते हैं, तो उससे एक और चीज निष्पन्न होती है, जिसे जैनों ने अनेकान्तवाद के सिद्धान्त का रूप दिया है। जैन कहते हैं कि निर्भ्रात सत्य, केवलज्ञान हमारा लक्ष्य है, परन्तु हम तो सत्य का एक अंश ही जानते हैं। वस्तु 'अनेक धर्मात्मक' है, उसके अनेक पहलू हैं, वह है। लोग उसका यह या वह पहलू ही देखते हैं, परन्तु उनकी दृष्टि आंशिक है, अस्थायी है, सोपाधिक है। सत्य को वही जान सकता है, जो वासनाओं से मुक्त हो । - यह विचार हममें यह दृष्टि उपजाता है कि हम ठीक समझते हैं वह गलत भी हो सकता है। यह हमें इसका एहसास कराता है कि मानवीय अनुमान अनिश्चययुक्त होते हैं। यह हमें विश्वास दिलाता है कि हमारे गहरे से गहरे विश्वास भी परिवर्तनशील और अस्थिर हो सकते हैं । जैन चिंतक इस बारे में छह अंधों और हाथी का दृष्टांत देते हैं। एक अंधा हाथी के कान छूकर कहता है कि हाथी सूप की तरह है। दूसरा अंधा उसके पैरों को आलिंगन करता है और कहता है कि हाथी खंभे जैसा है। मगर इनमें से हर एक असलियत का एक अंश ही बता रहा है। ये अंश एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। उनमें परस्पर वह संबंध नहीं है, जो अंधकार और प्रकाश के बीच होता है, वे परस्पर उसी तरह संबद्ध हैं। जैसे वर्णक्रम के विभिन्न रंग परस्पर संबद्ध होते हैं । उन्हें विरोधी नहीं विपर्याय मानना चाहिए। वे सत्य के वैकल्पिक पाठ्यांक ( रीडिंग) हैं। Jain Education International मानना चाहिए। एक ही मूलभूत सत्य के विभिन्न पहलू । सत्य के एक पक्ष पर बहुत अधिक बल देना हाथी को छूने वाले अपनी-अपनी बात का आग्रह करने के समान है। विवेक दृष्टि अपनायें - वैयक्तिक स्वातंत्र्य और सामाजिक न्याय दोनों मानव कल्याण के लिए परमावश्यक हैं। हम एक के महत्व को बढ़ा-चढ़ा कर कहें या दूसरे को घटाकर कहें, यह हो सकता है । किन्तु जो आदमी अनेकान्तवाद, सप्तभंगीनय या स्याद्वाद के जैन विचार को मानकर चलता है वह इसप्रकार के सांस्कृतिक कठमुल्लापन को नहीं मानता। वह अपने और विरोधी मतों में क्या सही है और क्या गलत है, इसका विवेक करने और उनमें उच्चतर विवेक साधने के लिए सदा तत्पर रहता है। यही दृष्टि हमें अपनानी चाहिए। इस तरह संयम की आवश्यकता, अहिंसा और दूसरे के दृष्टिकोण एवं विचारों के प्रति सहिष्णुता और समझ का भाव - ये उन शिक्षाओं में से कुछ हैं, जो महावीर के जीवन से हम ले सकते हैं। यदि इन चीजों को हम स्मरण रखें और हृदय में धारण करें तो हम महावीर के प्रति अपने महान ऋण का छोटा-सा अंश चुका रहे होंगे। O - भगवान महावीर : आधुनिक संदर्भ से साभार आज संसार नवजन्म की वेदना में से गुजर रहा है । हमार लक्ष्य तो 'एक विश्व' है, परन्तु एकता के बजाय विभक्तता हमारे युग का लक्षण है । द्वंद्वात्मक विश्व - व्यवस्था हमें यह सोचने को प्रलोभित करती है। कि यह पक्ष सत्य है और वह पक्ष असत्य है और हमें उसका खंडन करना है। असल में हमें इन्हें विकल्प भारतीय संसद के संयुक्त अधिवेशन (दि. २३-०२-०७ को) में राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के अभिभाषण की उदात्त भावों से भरी अन्तिम काव्य पंक्तियाँ - सदाचारी व्यक्ति का चरित्र निश्छल होता है। निश्छल चरित्र से घर में मेल-मिलाप रहता है । घर में मेल-मिलाप से देश व्यवस्थित होता है । व्यवस्थित देश से विश्वभर में शांति आती है। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1 /8 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy