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________________ आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का... - विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्र सागर प्रचंडिया आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का, घर-घर में गूंजे शहनाई। अवनी से अम्बर तक हरषे, विवुध-लोक से अमृत बरसे, राजमहल भर गया मोद से, कुण्डग्राम में बजे बधाई। आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का, घर-घर में गूंजे शहनाई॥१॥ अग-जग सारा हो उठा मुखर, किन्नरियाँ अब गा रहीं मधुर, परियाँ अद्भुत नाच रहीं हैं, मंजीरों की ध्वनि गहराई। आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का, घर-घर में गूंजे शहनाई।२।। जागा आपस में सदाचार, मन में सबके हों सद्विचार, सब द्वेष-द्वन्द्व मिट चले त्वरत्, हो गये सभी भाई-भाई। आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का, घर-घर में गूंजे शहनाई॥३॥ सब अहंकार गज से उतरें, जब अंतर में समता पसरे, सब कपट-दिखावा बिनस चले, जब वही आर्जवी पुरबाई। आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का, घर-घर में गूंजे शहनाई।।४। संयम से सधता है जीवन, निर्मल हो जाये अन्तर्मन, निर्मल मन ही धर्म हमारा, हरता हरदय पीर-पराई। आज जन्म दिन सन्मति प्रभु का, घर-घर में गूंजे शहनाई।।५।। 0 मंगल कलश, सर्वोदय नगर, अलीगढ़ (उ.प्र.) २०२००१ वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये , महाऽर्णवे पर्वत मस्तके वा। सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा , रक्षन्ति पुण्यानि पुराकृतानि ।। वन में, रण में, शत्रुओं में, जल में, अग्नि में, समुद्र में और पर्वत की चोटी पर असावधान और विषम अवस्था में पुरुष की रक्षा पूर्व जन्म के पुण्य ही करते हैं। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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