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________________ PAR PIPPIN रामराजार सन्देश यह जानकर अत्यन्त ही हर्ष हुआ कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी राजस्थान जैन सभा भगवान महावीर जयन्ती के पुनीत अवसर पर महावीर जयन्ती स्मारिका का 44वाँ अंक प्रकाशित करने जा रही है। आज सारी मानवता आतंकवाद के भयाकान्त साये में सिहर-सिहर कर जी रही है। विश्व शान्ति आज बारूद के ढेर पर बैंठी अपने अस्तित्व को बनाये रखने की बाट जो रही है। जीवन के हर क्षेत्र में गला-काट प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। विश्व में क्षुद्र और स्वार्थी राजनीति का अजगर अपनी विर्षली फुकारों से भ्रष्टाचार, जातिवाद, घृणा, हिंसा को पनपा रहा है। जीवन मूल्यों का अध:पतन और अवमूल्यन हो रहा है। इस भयावह स्थिति में भगवान महावीर का सिद्धान्त 'जियो और जीन दो' समय की प्रथम आवश्यकता है। अगर मानवता को बचाना है, विश्व शान्ति की स्थापना करनी है, परस्पर समन्वय, एकता को बढ़ावा देना है और जैन धर्म को जनधर्म बनाना है तो हमें आज महावीर के सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और अनेकान्तवाद की अलख को पुन: जगाना होगा। तभी एक शान्त, समस्या-विहिन समाज, राष्ट्र और विश्व का निर्माण संभव हो सकेगा। मुझे पूर्ण आस्था है कि स्मारिका का प्रकाशन इस पावन उद्देश्य की प्राप्ति में एक सशक्त शंखनाद फूंकने में सफल होगा। इन्हीं मंगल भावनाओं के साथ हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। -विवेक काला अध्यक्ष – दिगम्बर जैन महासमिति महावीर जयन्ती स्मारिका 2007 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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