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________________ ऐतिहासिक अतिशय क्षेत्र घोघा . - महेन्द्र कुमार जैन पाटनी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र घोघा गुजरात वर्तमान में घोघा में तीन दिगम्बर जैन मंदिर हैं, राज्य के भावनगर शहर से २० किलोमीटर दूर स्थित जिनके नाम हैं - दांडिया देरासर, गुजराती देरासर व है। भावनगर से हर एक घंटे में घोघा के लिए बसें चौपड़ा देरासर। इन मंदिर के पास तीन श्वेताम्बर मंदिर मिलती हैं। घोघा खम्भात की खाड़ी के तट पर बसा भी हैं। श्वेताम्बर मंदिरों की मूर्तियाँ दिगम्बर जैन मंदिरों है। प्राचीन काल में घोघा बहुत बड़ा व्यापारिक नगर में स्थापित जैन प्रतिमाओं से प्राचीन हैं। दिगम्बर जैन था तथा बंदरगाह था। यहाँ पर बड़े-बड़े व्यापारी धर्मशाला में २ अच्छे कमरे बने हैं, शौच व स्नानागार विशेष रूप से जैन व्यापारी रहते थे, जो सुदूर पूरब भी अच्छे बने हुए हैं। पानी व विद्युत सुविधा है। मंदिर देशों को माल का निर्यात करते थे। तथा वहाँ से प्रबन्ध में लगे कर्मचारी भी प्रांगण में ही रहते हैं। इस बंदरगाह में ही वहाँ की वस्तुओं का आयात करते श्वेताम्बर समाज की नियमित भोजनशाला सुचारू थे। घोघा से शत्रुञ्जय तीर्थ ६० किलोमीटर है तथा चलती है। गिरनार २१० किलोमीटर है। क्षेत्र का प्रबन्ध भावनगर दिगम्बर जैन समाज ___करीब २०० वर्ष पूर्व यहाँ लगभग १२०० द्वारा किया जाता है। भावनगर दिगम्बर जैन समाज ने जैन परिवार निवास करते थे, परन्तु प्लेग की बीमारी मंदिरों का जीर्णोद्धार/नवीनीकरण करवाया है तथा फैलने से सभी परिवार नष्ट हो गये। आज घोघा में धर्मशाला का निर्माण करवाया है। एक भी जैन परिवार निवास नहीं करता है। सिर्फ यहाँ के अतिशयों की इस प्रदेश में विशेष चर्चा मंदिर के प्रबन्ध में लगे कर्मचारी का परिवार ही सुनी जाती है। कहते हैं कि कभी-कभी रात्रि में मंदिर निवास करता है। से घंटों की आवाज सुनाई पड़ती है। एक पौराणिक आख्यान है कि राजा श्रीपाल ___ प्राचीन समय में घोघा बहुत ही समृद्धिशाली कोटिभट ६ माह तक समुद्र में डूबते-तैरते हुए घोघा नगर था । जब तक गुजरात की राजसत्ता चालुक्य वंशी नगरी के तट पर पहुँचे। वहाँ के जैन मंदिरों के विशेष भीमदेव द्वितीय, त्रिभुवपाल और बघेल वंश के हाथ रूप से सहस्रकूट चैत्यालय के कपाट बंद थे। कोई भी में रही, यहाँ का वैभव बढ़ता रहा। ये सभी राजा प्रायः इसे खोलकर दर्शन नहीं कर सकता था। श्रीपाल कोटिभट ने जैसे ही इसमें पैर का अंगूठा लगाया, वे सहस्रकूट जैन धर्मानुयायी थे। जब गुजरात की राज्यसत्ता मुसलमान चैत्यालय के वज्र कपाट खुल गये तथा सभी को शासकों के हाथ में आई, घोघा का व्यापार समाप्त हो गया, वैभव समाप्त हो गया। उस समय जैन व्यापारी सहस्रकूट चैत्यालय व जिन मंदिर के दर्शन करने का भी अन्य स्थलों पर चले गए। सौभाग्य मिला। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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